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कुलेषुतद्वत् पुरुषाः किमत्र हर्षेण शोकेन च सन्मतीनां ॥८॥
भावार्थ:- जेवी रीते वृक्ष पान, फूल, फल, आवे छे अने तेनो खरवानो वखत आव्यो एटले नीचे खरी पडे छे; तेवी रीते एक कुळमां मनुष्य जन्म ले छे अने मरवानो वखत आवे मरी जाय छे, माटे समजु माणसे तेथी हर्ष ते शुं ! ने शोक पण शुं करवो ! कईज नहीं.
दुर्लघ्याभ्द वितव्यता व्यतिकरान्नष्टे प्रिये मानुषे : यच्छोकः क्रियते तदत्र तमसि प्रारभ्यते नर्तनं ॥ - सर्व नश्वरमेववस्तु भुवने मत्वामहत्याधिया निर्धूता खिल दुःख संततिरहो धर्मः सदासेव्यतां ॥ ९ ॥
भावार्थ:- आ संसारमां टाळी नहीं शकाय एचा भावि atta बनवायी आपणुं ईट (Dear) माणस मरण पामवाथी जे शोक करीये छीये ते अंधारामां नृत्य करवा जेधुं छे. माटे हे बन्धुओ ! आ संसारमां सर्व वस्तुओ नाशवंत (momentary) - छे एम समजीने विवेकी माणसे सदा धर्मनुं सेवन करवुं नोइ . कारण धर्मयी संपूर्ण दुःख मट जाय छे,