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भावार्थ:- जेम रात्रिना विषे पंखियो एक झाडपर बेसे छे, अने सवारना सर्व दिशामां ऊडी जाय छे तेम माणस पण एक कुळमां आवे छे अने त्यांथी मरीने बीजा कुळमां जाय छे. माटे विचारवान माणस शामाटे शोक करशे !
दुःखव्याल समाकुलं भववनं जाड्यांधकाराश्रितं तस्मिन् दुर्गति पल्लिपातिकुपथैः भ्राम्यंतिसर्वेगिनः ।। तन्मध्ये गुरुवारप्रदीपममलज्ञानप्रभा भासुरं प्राप्या लोक्य च सत्पथं सुखपदं याति प्रबुद्धो ध्रुवं ॥ १७ ॥
भावार्थ:- आ संसाररूपी वन केबुं छे के जेमां दुःखरुपी हाथी भरेला छे, मूर्खाईरूपी अंधकार फैलायेलो छे, वळी ज्यां दुर्गतीरुपी भील लुंटी जाय एवा खराब रस्ता छे. एवा संसाररूपी वनमां संपूर्ण प्राणीमात्र भ्रमण करे छे. त्यां ज्ञानी माणसने गुरुना उपदेशरूपी दीवो जडे तो तेना आधारथी ते पोताना धार्या ठेकाणे एटले मोक्षस्थानमां पहोंची, शके छे. कारण गुरु वचन ते ठेकाणे बहु प्रकाश बतावनारुं छे. यैवस्व कर्मकृत काल कलात्र जंतु