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भावार्थ:-ज्यां सुधी यमराज क्रोधायमान (क्रोधा विष्ट) थईने सामो दोड्यो नथी त्यांसुधीज युद्ध संग्रामने विषे राजाना रथ, हाथी, घोडा, पोतानुं बळ बतावे छ; अने वीर योद्धा पण त्यांसुधीज गर्व राखे छे अने मंत्र शक्ति पग त्यांसुधीज चाली शके छ शौर्य अने तरवार पण तेटलीज वखत सुधी काम बजावे छे. कारण आ यमराज एटले काळ जे छ त महा निर्दय अने भूख्यो छे तेने खाऊ खाऊं कर. वानीज इच्छा छे. वास्ते ज्ञानी माणसे काळथी बचवानो यत्र करवो. राजापि क्षणमात्रतो विधिवशा,कायते निश्चितं सर्वव्याधि विवर्जितोपि तरुणोप्याशु क्षयं गच्छति॥ अन्यैः किं किल सारता मुपगते श्रीजिवितेवेतयोः संसारे स्थितिरीदृशीति विदुषाकान्यत्र का
__ोमदः ॥४२॥ भावार्थ:-राजा छे तो पण ते कर्मना योगे (संस्कारे) करी क्षणमात्रमा रंक थई जाय छे खायो निरोगी तरुण माणस होय छे पण ते कर्मना योगे पलक मात्रमा मरण पामे छे; त्यारे बीजानी तो वातज शी? जगतमां लक्ष्मी अने जी