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अने पुत्रादिकता वियोगथी उपजेला शोकने शांत करना छे बोधरूपी अनाज उपजावनारी जन्मभूमीज छे. इति श्री अनिस पंचाशत् संपूर्णा. विशेषमां कहेवानुं के:--- अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः ॥ नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ॥ १ ॥
भावार्थ:- आ. शरीर अनित्य हमेश. नथी. (नाशवंत क्षभंगुर छे.. ) वैभव पण सदा रहेतो नर्थी, अने मृत्यु सदा: समीपज ऊभुं छे.. एम जाणी धर्मनो संग्रह करवो जोइए.. ॐ श्री. शांन्ति शांन्ति शांन्ति ॥
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