Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 27
________________ (२६) स्तत्रैव याति मरणं न पुरो न पश्चात् ॥ मूढास्तथापि हि मृते स्वजने विधाय शोकं परं प्रचुर दुःखभुजो भवति ॥ १८ ॥ भावार्थ:- आ संसारमां हरेक प्राणी पोतानां बांधेला कर्म प्रमाणे जे वखत मरवानो, तेज वखते मरण पामे छे. तेमां घडी आगळ पाछळ थवानी नथी. तेम छतां सगावहालाना मरणथी मूर्ख लोको मोटो शोक आदरीने अतिशय दुःखना भोग थई पडे छे. वृक्षावृक्षमिवांडजा मधुलिहः पुष्पाचपुष्पं यथा - जीवायांति भवाद्भवांतरमिहाश्रांतं तथा संसृतौ ॥ तज्जातेथ मृतेथ वा नहि मुदं शोकं न कस्मिन्नपि प्रायः प्रारभतेधिगम्य मति मानस्थैर्य मित्यंगिनां ।। १९ ।। भावार्थ:- आ संसारमां पंखीओ जेम एक झाड ऊपरथीऊडीने बीजा झाड ऊपर बेसे छे, भ्रमर एक झाडना फूलपरथी ऊडीने बीजा फूलपर बेसे छे, तेम माणी मात्र पण एक

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