Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 12
________________ (११) सोहं व्रजामी विपने जटील तपस्वी ॥ ३ ॥ अर्थात् - हे प्रिये रात्रे हुं एवो विचार करी निद्रावश थयो हतो के सूर्यनो उदय काळ थतांज हुं चक्रवर्त्ति राजा थईश. परन्तु पछीथी चौद वरस वनवासमां जटा धारण करीने तपस्वी थई रहेवुं पडयुं. माटे काळने रोकवा कोई समर्थ नथी. तेमज ज्ञानी लोकनुं कहेतुं छे के मनुष्य जींदगी एकाळना अनंत प्रवाहनुं मोजुं छे, तेनी उत्पत्ति, स्थिती, अने लय एत्रणे काळमां रहेलां छे. उत्पत्ति अने स्थितीनो काळ पूजाय छे, अने लय काळरुपे वखोडाय छे. वस्तुस्थिती जोतां आ अवस्था प्राणीमात्रने स्वभावतः प्राप्त थाय छे. जन्म्युं ते जवानुं, खील्युं ते करमावानुं, चडयुं ते पडवानुं, प्राणनी माया, ने प्राणनी पूठे झगडो, कोई पांच, पचीस, तो कोई पचास, सो, परन्तु अजरामर ( अमर ) तो कोई नथी. गई कालनुं वृत्तांत ते आजनो ईतिहास, ईतिहास लखनारनो पाछो इतिहास, कोण कोने रडवुं ? जेम अनि सर्वभूकज छे तेम काळ पण सर्वभूकज छे " शीर्यते इति शरीरं " एतो शरीरनो धमज छे के कोई दिवस तेनो नाश थवानोज. पूरण पुरुषोतम नवमा नारायण कृष्ण तेमज चंद्रवंशना युधिष्ठिर तेमज सूर्य-.

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