Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 18
________________ ( १७ ) भावार्थ:- आ कायारूपी झुपडुं केबुं छे के जेनी भींतो जोई तो दुर्गंध अपवित्र सप्त धातूनी बनेली, अने तेनापर चामडानो गिलावो, ने वळी अंदर मळसूत्र भरेलां, बळी पाछा तेमां क्षुधा विगेरे दुःखरुपो उंदरे छिद्र पाडेलां एदलुंज नहीं पण पोतानी मेळे घडपणरुपी अग्निथी बळी जाय एवं छतां पण मूर्ख लोको तेने पवित्रने स्थिर ( अजरामर ) माने छे - अंभो बुहुद सन्निभा तनुरियं श्रीरिंद्रजालोपमा दुर्वाता हत वारिवाह सदृशा कांतार्थ पुत्रादयः ॥ सौख्यं वैषयिकं सदैवतरलं मत्तांगनापांगवत् तस्मादेतदुपलवाप्ति विषये शोकेन किंकिंमुदा ॥ ४ ॥ भावार्थ:- आ संसारमां शरीर जे छे ते पाणीना बुड बुडा जेवुं छे. अने लक्ष्मी छे ते इंद्रजाल जेवी छे. अने स्त्री, पुत्र, धन, दोलत तो मोटा पवनथी अथडायला मेघनां वादळां जेवां छे. अने विषयथी नीपजतुं सुख हमेश चंचल एटले उन्मत स्त्रीना नेत्र कटाक्ष जेवुं छे. माटे एवा उपर बतावेला सुखनो नाश भयो तो तेमां शोक ते शुं ? अने मळयुं तो तेथी हर्ष ते पण शुं ?

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