Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 17
________________ यद्यकत्र दिनेन भुक्ति रथवा निंद्रा न रात्रौ भवेत् विद्रात्यं बुज पत्रवदहन तो भ्या शस्थिताद्यध्रुवम्।। अस्त्र व्याधि जलादितोपि सहसा यच्चक्षयं गच्छति भ्रातः कात्र शरीरके स्थिति मतिनाशेऽस्यको विस्मयः॥२॥ भावार्थ:-जो एक दहाडो आ शरीरने खावानुं नहीं आप्युं तो रात्रिने विषे ऊंघ आवती नथी. अने जेम अग्निना नजीक कमळपत्र मूकीए तो ते करमाई जाय छे, तेवीज रीते आ शरीरने जो कई शस्त्रनो प्रहार थयो अथवा तेमा व्याधी उत्पन्न थयो अथवा ते जलादिमां डूबी गयुं तो तरत ते नाश पामे छे. माटे हे भाईयो! एवा नाशवंत शरीरना विषे शावत बुदि फेम रखाप ? ने एवं शरीर नाश थाय तेनां आश्चर्य ते चं? कंज नहीं. दुर्गधा शुचि धातु भित्तिकलितं संछादितं च र्मणा विण्मूत्रादि भृतं क्षुधादि विलस दुःखाखुभिश्छिद्रित। क्लिष्टं काय कुटीरकं स्वयमपि पाप्तं जरा वन्हिना थे देत जदपि स्थिरं शुचि तरं मूढो जनो मन्यते ॥३॥

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