Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 19
________________ (१८) दुःखे वा समुपस्थितेऽथमरणे शोको न कार्योबुधैः संबंधो यदि विग्रहेण यदयं संभूतिदात्रीतयोः॥ तस्मात्तत्परि चिंतनीयमनिशं संसार दुःखप्रदो ये नास्य प्रभवः पुरःपुनरपिप्रायोन संभाव्यते ॥५॥ भावार्थ:-जो एवा नाशवंत शरीरनी साथे संबंध छे अने तेमाथी दुःख भोगवई पडयुं अथवा मृत्यु थयुं, तो ते वखते डाह्या (मुज्ञ) माणसे शोक करवो नहीं. कारण आ काया जे छे ते दुःख अने शोकने उपजावनारी भूमीज छ. माटे निरंतर आत्म स्वरुपर्नु चितवन करवं, जे आत्म चिंतवन करवाथी आगळ आ दुःखदाथी संसारमा शरीरनु उपजबुं तथा मरवू फरीथी थायज नहीं. दुर्वारार्जित कर्मकारण वशादिष्टेप्रनष्टेनरे यच्छोकं कुरुते तदत्र नितरामुन्मत्तलीलायितं ।। यस्मात्तत्रकृतेन सिद्ध्यति किमप्येतं परंजायते नश्यंत्येव नरस्य मूढ मनसो धर्मार्थ कामादयः॥६॥ यं उपजावेलां करमने लीधे आपणो Jhai

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