Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 17
________________ १६ अनकान्त [वर्ष१, किरण १ मुक्तिं गते महावीरे प्रतिवर्षसहस्रकम् । इसी तरह पर यह भी स्पष्ट है कि हरिवंशपुराण और एकैको जायते कन्की निनधर्म विरोधकः ॥ त्रिलोकप्रज्ञप्ति के उक्त शक-काल-सूचक पद्यों में जो -हरिवंशपुराण। क्रमशः 'अभवत्' और 'संजाद' (संजातः) पदों का एवं वस्ससहस्से पह ककी हवेइ इकेको। प्रयोग किया गया है उनका हुआ'-शकराजा हुआ -त्रिलोकप्रज्ञप्ति । अर्थ शक कालकी समाप्ति का सूचक है, प्रारंभसूचक इसके सिवाय, हरिवंशपुराण तथा त्रिलोकप्रज्ञप्ति नहीं। और त्रिलोकसार की गाथा में इन्हीं जैसा कोई में महावीर के पश्चात् एक हजार वर्षके भीतर होनेवाले क्रियापद अध्याहन (understood) है। राज्यों के समय की जो गणना की गई है उसमें साफ़ यहाँ पर एक उदाहरण द्वारा मैं इस विषय को तौर पर कल्किराज्य के ४२ वर्ष शामिल किये गये हैं। और भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ । कहा जाता है और ऐसी हालत में यह स्पष्ट है कि त्रिलोकसार की उक्त श्राम तौर पर लिखने में भी आता है कि भगवान गाथा में शक और कल्की का जो समय दिया है वह पार्श्वनाथ से भगवान महावीर ढाई सौ (२५०) वर्ष के अलग अलग उनके राज्य कालकी समाप्ति का सूचक बाद हुए । परंतु इस ढाई सौ वर्ष बाद होने का क्या है। और इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि शक अर्थ ? क्या पार्श्वनाथ के जन्म से महावीर का जन्म राजा का राज्यकाल वीरनिर्वाण से ६०५ वर्ष ५ महीने ढाई सौ वर्ष बाद हुआ ? या पार्श्वनाथ के निर्वाण से बाद प्रारंभ हुआ और उसकी-उसके कतिपय वर्षात्मक महावीर का जन्म ढाई सौ वर्ष बाद हुआ ? अथवा स्थितिकाल की समाप्ति के बाद ३९४ वर्ष ७ महीने पार्श्वनाथ के निर्वाण में महावीर को केवलज्ञान ढाईसौ और बीतने पर कल्किका गज्यारंभ हुआ। ऐसा कहने वर्ष बाद उत्पन्न हुआ ? तीनों में में एक भी बात सत्य पर कल्किका अस्तित्वसमय वीरनिर्वाण से एक हजार नहीं है । तब सत्य क्या है ? इसका उत्तर श्रीगुणभद्रावर्ष के भीतर न रहकर १५०० वर्ष के करीब होजाता चार्य के निम्न वाक्य में मिलता है:है और उससे एक हजार की नियत संख्या में तथा पार्श्वेश-तीर्थ-पन्ताने दूसरे प्राचीन ग्रन्थोक कथन में भी बाधा आती है और पंचाशदद्विशताब्दक। एक प्रकारसे मारी ही कालगणना विगड़ जाती है। तदभ्यन्तरवत्याय. * श्रीयुत के.पी. जायसवाल बैरिष्टर पटना ने, जुलाई सन् महावीरोऽत्र नातवान् ।। २८६ ॥ १६१७की इन्डियन ऍटिक्वरी में प्रकाशित अपने एक लेख में, हरि महापुराण, ७४वाँ पर्व । वशपुराणके — द्विक्वारिंशदेवातः कल्किाजस्यराजता ' वाक्य के इसमें बतलाया है कि 'श्रीपार्श्वनाथ तीर्थकर से सामने मौजूद होते हुए भी जो यह लिख दिया है कि इस पुराणमें ढाई सौ वर्षके बाद, इसी समय के भीतर अपनी श्रायु कल्किराज्य के नहीं दिये, यह बड़े ही प्राची की बात है। वीरभ मापका इस पुराण के माधार पर गुप्तराज्य भौर कल्किराज्य के बीच ४२ वर्ष का अन्तर बतलाना मोर कल्कि के मस्तकाल को नाथ के निर्वाण से महावीर का निर्वाण ढाई सौ वर्ष उसका उदयकाल Krise of Kalki) सूचित कर देना बत बड़ी के बाद हुआ । इस वाक्य में 'तदभ्यन्तरवत्योयुः' (इसी ग्लती तथा भूल है। समय के भीतर अपनी आयु को लिये हुए) यह पद

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