Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ ॥ श्री आनंदघनाय नमः ॥ ॥ अथ श्री आनंदघनजी माहाराजकृत बहुत्तेरी आदिकनां पद प्रारंनः॥ ॥ पद पहेलु॥ राग वेलावल ॥ ॥ क्या सोवे उठ जाग बानरे ॥ क्या० ॥ ए आं कणी॥अंजलि जल ज्युं आयु घटत हे, देत पहोरीयां घरिय धान रे ॥ क्या ॥१॥६६ चं नागिं मुनि चले, कोण राजा पति साह राउ रे ॥ नमत जमत जवजलधि पायकें, नगवंत जजनविन नाक नान रे॥ क्या ॥ २॥ कहा विलंब करे अब बानरे, तरी नवजलनिधि पार पाउ रे ॥ आनंदघन चेतनमयमूर ति, शुक्ष निरंजन देव ध्यान रे ॥क्या॥३॥इति पदं। ॥ पद बीजं ॥राग वेलावल ॥ एकताली ॥ ___ ॥रे घरिया रे बानरे,मत घरीय बजावे ॥ नर सिर बांधत पाघरी, तुं क्या घरीय बजावे ॥रे० ॥१॥ केवल काल कला कले, पै तुं अकल न पावे ॥ अकल कला घटमें घरी, मुज सो घरी जावे ॥रे० ॥ २ ॥ आतम अनुजव रस जरी, यामें और न मावे ॥श्रा नंदघन अविचल कला, विरला कोई पावे ॥रे ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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