Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 34
________________ आनंदघनजी कृत पद ५१ ग्यानसिंधू मथित पाइ, प्रेम पीयूष कटोरी हो। मोदत आनंदघन प्रनु शशिधर, देखत दृष्टि चकोरी हो॥५॥ ॥ पद गणचालीशमुं॥राग जयजयवंती ॥ ॥ तरसकीज दरको दश्की सवारी री, तीक्ष्ण क टाद बटा लागत कटारीरी॥तर ॥१॥ सायक लाय • क नायक प्रानकोपहारीरी,काजर काज न लाज बाज न कहुँ वारीरी॥ तर॥॥ मोहनी मोहन ठग्यो जगत उगारीरी,दीजीयें यानंदघन दाह हमारी॥तर० ३॥ ..॥ पद चालीशमुं॥ राग आशावरी ॥ .. . ॥ मीठडो लागे कंतडोने, खाटो लागे लोक ॥ तविहूणी गोठडी, ते रण मांहै पोक ॥ मी० ॥ १ ॥ कंतडामें कामण, लोकडामें शोक ॥ एकतामें केम र हे, दूध कांजी थोक ॥ मी० ॥ २ ॥ कंतविण चन गति, आणुं मानुं फोक ॥ उघराणी सिरड फिर ड, नाणुं तेजें रोक ॥ मी०॥३॥ कंत विना मति मारी, अहवाडानी बोक ॥ धोक झुं आनंदघन, अवरने ढोक ॥ मी० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकतालीशमुं ॥ वेलावल अथवा मारु ॥ ॥पीया बिनु सुन बुझ नूती हो, आंख लगा ३ःख महेलके, जरूखे फूली हो ॥ पीया ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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