Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२. आनंदघनदी कृत पद. पीतांबर पटवारेसं ॥सा॥१॥चंद चकोर जये प्रान पपईया, नागरनंद दूंलारेतूं ॥ इन सखीके गुन गंश्प गावे, आनंदघन उजीयारेसं ॥ सा ॥२॥ इति ॥
॥ पद चोपनमुं॥ राग प्रजाती आशावरी ॥रातडी - रमीने किहांथी आविया ॥ ए देशी॥
॥ मूलडो थोडो नाई व्याजडो घणो रे, केम करी दीधो रे जाय ॥ तलपद पूंजी में आपी संघली रे, तोहे व्याज पूरूं नवि थाय॥मू॥१॥व्यापार नागो जलव ट थल वटें रे, धीरे नहीं नीसानी माय ॥ व्याज बो डावी कोश खंधा परग्वे रे, तो मूल आपुं सम खाय
॥मू॥॥ हाटडं मांडं रूडा माणक चोकमां रे, सा . जनीयांनुं मनडुं मनाय ॥ आनंदघन प्रनु शेत शिरो मणि रे, बांहडी जालजो रे आय॥ मू॥३॥ इति ॥
॥ पद पंचावनमुं ॥ राग धन्याश्री॥ . ॥ चेतन आपा कैसें लहो ॥ चे॥ सत्ता एक अ खंम अबाधित, शह सिद्धांत पख जो॥चे ॥१॥ न्वय अरु व्यतिरेक हेनको, समज रूप चम खोया रोपित सब धर्म और है,आनंदघन तत सोशाचे॥२॥
॥ पद उप्पनमुं॥ राग धन्याश्री॥ ॥ बालुडी अबला जोर किश्यं करे, पीनडो ,पर
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