Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ च्यानंदघनजी कृत पद. ५३ यावे ॥ ज्युं जाणे त्युं कर ले जलाई, जनम जनम सुख पावे ॥ श्रवस ॥ १ ॥ तन धन जोबन सबही जूठो, प्राण पलक जावे ॥ अवसरणं ॥ २ ॥ तन लूटे धन कौन कामको, कायकूं कृपण कहावे ॥ अवसर ० ॥ ३ ॥ जाके दिल में साच बसत है, ताकूं जूठ न जावे ॥ अवसर० ॥ ४ ॥ यानंदघन प्रभु चलत पंथमें, समरी समरी गुण गावे ॥ अवसर० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो एकमुं ॥ राग श्राशावरी ॥ ॥ मनुष्यारा मनुष्यारा, रिखन देव मनुप्यारा ॥ ए यांकणी ॥ प्रथम तीर्थकर प्रथम नरेसर, प्र थम यतिव्रतधारा ॥ रिखने० ॥ १ ॥ नानिराया मरुदेवीको नंदन, जुगला धर्मनिवारा ॥ रिखन० ॥ ॥ २ ॥ केवल लइ प्रभु मुंगतें पोहोता, यावागम न निवारा || रिखन० ॥ ३ ॥ आनंदघन प्रभु इतनी विनति, या जब पार उतारा ॥ रिखन ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशो बेमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ ए जिनके पाय लाग रे, तुने कहीयें केतो ॥ ए जिनके ॥ ए की ॥ यागे जाम फिरे मदमा तो, मोहजिंदरीयाशुं जाग रे ॥ तुने० ॥ १ ॥ प्रभु जी. प्रीतम विन नही कोई प्रीतम, प्रभुजीनी पूजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114