Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 96
________________ चिदानंदजी कृत पद. ८३ खर दृष्टांत प्रमाण ॥ चिदानंद अध्यातमसैली; समज परत एक तान रे ॥ घ० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद चुंमालीशमं ॥ राग काफी ॥ ॥ कथ कथा कु जाणे हो, तेरी चतुर सनेही ॥ कथ० ॥ ए कणी ॥ नयवादी नयपक्ष ग्रहीने, जूता ऊगडा ठाणे ॥ निरपख लख चख स्वाद सुधा को, तेसो तनक न तारो हो । तेरी ॥ १ ॥ बिनमें रूप रचत नानाविध, आप व्यरूप बखाने ॥ बिन मूरख ज्ञान होये बिनमें, न्याय सकल बिन जाये हो ॥ तेरी० ॥ २ ॥ चोर साध कबु कह्यो न परतु है, लख नाना गुणगणे ॥ जैसो हेतु तैसो चिदा नंद, चित्त श्रद्धा इम या हो ॥ तेरी० ॥ ३ ॥ ॥ पद पीस्तालीशमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ अलख लख्या किम जावे दो, ऐसी कोन जुग ति बतावे ॥ ० ॥ ए यांकणी ॥ तन मन वचना तीत ध्यान धर, अजपा जाप जपावे ॥ होय मोल लोलता त्यागी ज्ञान सरोवर न्हावे हो ॥ ऐसी० ॥ ॥ १ ॥ शुद्ध स्वरूपमें शक्ति संचारत ममता दूर व हावे ॥ कनक उपल मल निन्नता काजे, जोगानल उपजावे हो ॥ ऐसी० ॥ २ ॥ एक समय समश्रेणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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