Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 100
________________ चिदानंदजी कृत पद. ज काने ॥ प्र० ॥१॥ जिनमें रुष्ट तुष्टहोय जिनमें, रा व रंक बिनमांहि ॥ चंचल जेम पताका अंचल, तेह विगत ऋण मांहि ॥ प्रजु ॥ ३ ॥ वक्र तुरंग जिम सुलटी शिक्षा, तज उलटी हु ताने । विषमगति अति याकी साहेब, अतिशयधर कोन जाने ॥प्रनु० ॥३॥ अति गतियें कहुं हुं तुमथी,तुम बिन कोन न सिया ने ॥ चिदानंद प्रनु ए विनतिकी, अब तो लाज ने थां ने ॥ प्रनु० ॥४॥ इति पदं॥ .. ॥ पद बावनमुं॥ राग सोरठ मलार ॥ .. . ॥ तारोजी राज तारोजी राज, दीनानाथ अब मोहे तारो जी राज॥ ए आंकणी ॥ पूरव पुण्य उदय तुम नेटे, तारण तरण जिहाज ॥ दीना ॥ १ ॥ पतित उधारण तुम पण धास्यो, हुँ पतितन सिरता ज॥दी० ॥॥श्रागें अनेक नधारे तदपिन,क विनताम व्यो आजादी॥३॥णे अवसर जिम करी रखीयें, बिरुद ग्रहेकी लाजादी॥४॥ चिदानंद सेवक जिन साहेब,नीको बन्यो हे समाज॥दी॥५॥ ॥ पद त्रेपनमुं॥ राग शोरत ॥ . ॥ श्रावोजी राज यावोजी राज, साहेबा थें महा रे मोलें आवोजी राज ॥ ए आंकणी ॥ सीस नमाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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