Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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चिदानंदजी कृत पद. १३ ॥ पद त्रेशनमुं॥ उम नमरा कंकणीपर बैता ॥
॥ नथणीसें ललकारंगी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीशंखेसर पासजिनंदके, चरणकमल चित्त ला नंगी॥ सुपजो रे सऊन नित्य ध्यानंगी॥ए अांक णी ॥ एहवा पण दृढधारी हियामें, अन्यछार नहि जाउंगी ॥ सु० ॥ १ ॥ सुंदर सुरंग सलूनी मूरत, नि रख नयन सुख पाउंगी॥सु०॥२॥ चंपा चंबेली
आन मोघरा, अंगीयां अंग रचानंगी॥ सु० ॥३॥ शीलादिक शणगार सजी नित्य, नाटक प्रनुकू दे खानंगी।सु० ॥४॥ चिदानंद प्रनु प्राण जीवनकू, मोतियन थाल वधानंगी ॥ सु० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद चोशनमुं ॥ अजितजिणंदरांप्रीतडी॥ ए देशी॥
॥अजित अजित जिन ध्याश्यें, धरि हिरदे हो नवि निर्मल ध्यान ॥ हृदय सरोजामें रह्यो, सुरजी सम हो लही तास विज्ञान ॥ अजित॥१॥कीटध्या नगी तणो,निज धरतां हो ते नूंगी निदान ॥ अकल धौत स्वरूपता, लोह फरसत हो पारस पारवान ॥ अ॥२॥ पुन पिचुमंदादिक सहि, होय चंदन हो म लयागरु संग ॥ सैंधव क्यारीमें पड्यो, जिम पा लट्टे हो वस्तुनो रंग ॥ अ० ॥ ३ ॥ ध्येयरूपनी एक
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