Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 109
________________ ए६ चिदानंदजी कृत पद. वे, सुणि चिदानंद निज घर आवे ॥ दो प्री० ॥॥ ॥पद सडशपमुं ॥ गहूंली॥ ॥ चंवदनी मृग लोयणी, एतो सजी शोल शण गार रे ॥ एतो आवी जगगुरु वांदवा, धरी हियडे ह रख अपार रे॥ अ॥१॥ हारे एतो मुक्ताफल मूली नरी, रचे गहूंली परम नदार रे ॥ जिहां वाणी योजनगामिनी, घन वरसे अखंमित धार रे अ॥ ॥ २ ॥ हारे जिहां रजत कनक रतनना, सुरर चित त्रण प्राकार रे ॥ तस मध्य मणिसिंहासने, शो नित श्री जगदाधार रे॥ अ॥३॥ हारे जिहां नर पति खगपति लखपति, सुरपति युत परखदा बार रे॥लब्धि निधान गुण आगरु, जिहां गौतमसें गण धार रे ॥०॥ ४॥ हारे जिहाँ जीवादिक नवतत्त्व नो, षटव्य नेद विस्तार रे॥ एतो श्रवण सुणी नि मेल करे, निज बोधबीज सुखकार रे ॥०॥ ५ ॥ हारे जिहां तीन बत्र त्रिवन नदित, सुर ढालत चा मर चार रे ॥ सखी चिदानंदकी बंदना, तस होजो वारंवार रे ॥१०॥६॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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