Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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चिदानंदजी कृत पद ५ सहज श्याम घर आए, सखी मुख होरी गावो री॥५॥
॥ पद अडतालीशमुं ॥ राग जंगलो काफी ॥
॥ जगमें नहिं तेरा कोई, नर देखदु निहचें जोई॥ जग ॥ ए आंकणी ॥ सुत मात तात अरु नारी, सद् स्वारथके हितकारी ॥ बिन स्वारथ शत्रु सोई॥ जग ॥ १ ॥ तुं फिरत माहा मदमाता, विषयन संग मूरख राता ॥ निज संगकी सुधबुरखोई॥जग ॥ ॥ घट झानकला नवि जाकू, पर निज मानत सुन ताकू ॥आरखर परतावा होई ॥ जग ॥३॥ नवि अनुपम नरजव हारो, निज शुरू स्वरूप निहा रो॥अंतर ममता मल धोई॥ जग० ॥ ४ ॥ प्रनु चिदानंदकी वाणी, धार तूं निचे जग प्राणी ॥ जिम सफल होत नव दोई॥ जग० ॥५॥इति पदं॥
पद ओगणपचाशमुं॥राग जंगलो काफी॥ ॥ जूनी जूती जगतकीमाया, जिन जाणीनेद तिन पाया ॥ जू ॥ ए आंकणी ॥ तन धन जोबन सुख जेता,सदु जागहुँ अथिर सुख तेता।नर जिम बादलकी बाया ॥ जू० ॥ १ ॥ जिम अनित्य नाव चित्त आ या, लख • गलित वृषनकी काया ॥ बूजे करकंमूरा या ॥ जू० ॥२॥ म चिदानंद मनमांही, कबु करी
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