Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 83
________________ ७०. चिदानंदजी कृत पद. साच कई तोहे जात वही री॥५॥१॥जलधर बुंद समुह समाणी, निन्न करत कोउ तास मही री॥ द्वैत जावकी टेव अनादि, जिनमें ताकुं आज दही री॥अ॥२॥ विरहव्यथा व्यापत नही बाली, प्रेम धरी पियु अंक ग्रही री॥ चिंदानंद चूके किम चातुर, ऐसो अवसर सार सही री॥अ॥३॥इति पदं ॥ .. ॥ पद पच्चीशमुं॥ राग टोडी॥ ॥प्रीतम.प्रीतम प्रीतम प्रीतम, प्रीतम प्रीतम क रती में हारी॥प्री०॥ ए आंकणी॥ऐसे नितर नये तुम कैसे, अजहुँ न लीनी खबर हमारी ॥ कवण नां त तुम रीफ़त मोपें, लंख न परत गति रंच सिंहा री॥प्री० ॥१॥ मगन नए नित्य मोह सुता सं ग, विचरत हो स्वबंद विहारी ॥ पण इण वातनमें सुण वालम, शोना नही जगमांहि तिहारी ॥ प्री० ॥२॥ जो ए वांत तात मम सुणी, मोहरायकी क रीहे खुवारी॥ मम पीयर परिवारके आगल, कुम 'ता कहा ते रंक बिचारी॥प्री॥३॥ कोटि जतन करी धोवत निशदिन, उजरी न होवत कामर कारी॥ तिम ए साची शिखामण मनमां, धारत नांही नेक अना री॥प्री० ॥ ४ ॥ कहत विवेक सुमति सुण जिम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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