Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 93
________________ ७० चिदानंदजी कृत पद. री, तेतो बाल कुमारी रे॥जे स्वामी ते तात तेहनो, कह्यो जगत हितकारी रे ॥ ऐसा ॥ १ ॥ अष्ट दी करी जाई बाला, ब्रह्मचारिणी जोवे रे ॥ परणावी पू रणचंदाथी, एक सेज नवि सोवे रे ॥ ऐसा ॥२॥ अष्ट कन्याका सुत वली जाये, हादश ते वली सोई रे ॥ ते जगमाहे अजनमे कहीयें, करता नवि तस कोई रे ॥ ऐ० ॥ ३ ॥ मात तात सुत एकदिन जन मे, बोटे बडे कहावे रे ॥ मूल तिनोंका सदु जग जाणे,शाखा नेद न पावे रे ॥ ऐसा॥४॥जो इण के कुल केरी शाखा, जाणे खोज गमावे रे॥खोज जा य जगमे तो पण ते, सदुथी बडे कहावे रे.॥ ऐसा ॥५॥ अथवा नर नारी नपुंसक, सढुकी ए माता रे ॥ षटमतबाल कुमारी बोलत, ए अचरिजकी बा ता रे ॥ऐसा ॥ ६ ॥ लोक लोकोत्तर सद कारजमें, या बिन काम न चाले रे॥ चिदानंद ए नारिंगुं रमण, मुनि मनथी नवि टाले रे ॥ ऐसा ॥७॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकतालीशमुं॥राग प्रजाती ॥ उठोने मोरा .. आतमराम, जिनमुख जोवा जश्ये रे ॥ ए देशी॥ ॥ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग लागो रे॥ ए आंकणी ॥ तप जप संजम दानादिक सङ, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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