Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 85
________________ चिदानंदजीकत पद. धारे, ते. उर्गति गये बिचारे ॥ देखो जगतमें प्रानी, कुःख लहत अधिक अनिमानी ॥ लघु ॥ १॥ शशी सूरज बडे कहावे, ते रादुके बस आवे ॥ तारा गण लघुता धारी, स्वरजानु नीति निवारी ॥ लघु०॥२॥ गेटी अति जोयणगंधी, लहे खटरस स्वाद सुगं धी॥ करटी मोटाइधारे, ते बार शीश निज मारे ॥लघु ॥३॥ जब बालचंद हो यावे, तब सदु जग देखण धावें ॥ पूनमदिन बडा कहावे, तव खीण कला होय जावे ॥ लघु ॥ ४ ॥ गुरुवाइ मनमें वेदे, उप श्रवण नासिका दे॥अंगमांहे लघु कहावे, ते कारण चरण पूजावे ॥ लघु ॥ ५॥ शिशु राजधा ममें जावे, सखी हिलमिल गोद खिलावे ॥ होय बडा जाण नवि पावे, जावे तो सीस कटावे ॥ लघु॥६॥ अंतर मद जाव वहावे, तब त्रिजुवन नाथ कहावे ॥ श्म चिदानंद ए गावे, रहणी बिरला कोन पावे ॥ लघु० ॥ ७ ॥ इति पदं ॥ . . ... ॥ पद अहावीशमुं ॥ राग टोडी॥ ॥ कथणी कथे सह को, रहणी अतिपुर्तन हो ३॥ कथम् ॥ ए अांकणी ॥ शुक रामको नाम वखा रो, नवि परमारथ तस जाणे ॥ या विध जगी वेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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