Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 72
________________ चिदानंदजी कृत पद. ५‍ करो रे, धरो सु संवर नेख ॥ चिदानंद तब देखीयें प्यारे, शशि स्वनावकी रेख | बंध० ॥ ५ ॥ ॥ पद पांचमुं ॥ राग काफी ॥ ॥ मतिमत एम विचारो रे, मत मतीयनका जाव ॥म०॥ एत्र्यांकणी ॥ वस्तुगतें वस्तु लहो रे, वाद वि वाद न कोय ॥ सूर तिहां परकाश पीयारे, अंधकार न वि होय ॥ म० ॥ १ ॥ रूप रेख तिहां नवि घटे रे, मुड़ा नेख न होय ॥ नेद ज्ञान दृष्टि करी प्यारे, दे खो अंतर जोय ॥ म० ॥ २ ॥ तनता मनता बचनता रे, परपरिणति परिवार ॥ तन मन बचनातीत पी यारे, निजसत्ता सुखकार ॥ म० ॥ ३ ॥ अंतर शु 5 स्वनावमें रे, नहिं विनाव लवलेश ॥ भ्रम चारो पित लक्ष्यी प्यारे, हंसा सहत कलेश ॥ म० ॥ ४ ॥ अंतर्गत निचें गही रे, कायाथी व्यवहार ॥ चिदा नंद तव पामीयें प्यारे, जव सायरको पार ॥ म० ॥ ५॥ ॥ पद बहुं ॥ राग काफी अथवा वेलावल ॥ ॥ कलकला जगजीवन तेरी ॥ कल० ॥ ए यांकणी ॥ अंत उदधिथी अनंत गुणो तुव, ज्ञान महा लघु बुद्धि ज्युं मेरी ॥ अक० ॥ १ ॥ नय अरु जंग नि केप विचारत, पूरवधर थाके गुण हेरी ॥ विकल्प For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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