Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 78
________________ चिदानंदजी कृत पद. ६५ अनुचंद ॥ हृदय विशाल थाल कटि केहरी, नानिस रोवर खंद ॥अ॥३॥ कदली खंन युग चरनसरोज जस, निशिदिन त्रिनुवन वंद ॥ चिदानंद आनंद मूर ति, ए शिवादेवीनंद । अ० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद शोलमुं ॥ राग नैरव ॥ ॥ विरथा जनम गमायो ॥ मूरख विर॥ ए यां कणी ॥ रंचक सुखरस वश होय चेतन, अपनो मू ल नसायो॥ पांच मिथ्यात धार तुं अजहुँ, साच नेद नवि पायो ॥ मू॥१॥ कनक कामिनी अरु एहथी, नेह निरंतर लायो ॥ तादुथी तुं फिरत सोरांनो, क नकबीज मार्नु खायो ॥ मूळ ॥ २ ॥ जनम जरा मरणादिक फुःखमें, काल अनंत गमायो । अरहट घटिका जिम कहो याको, अंत अजहुँ नवि आयो॥ मू० ॥ ३ ॥ लख चोराशी पेहेया चोलना, नव नव रूप बनायो ॥ बिन समकित सुधारस चारख्या, गि ती कोउ न गिणायो ॥ मू॥४॥ एती पर नवि मानत मूरख,ए अचरिज चित्त आयो॥ चिदानंद ते धन्य जगतमें, जिणे प्रचुरुं मन लायो॥ मू ॥५॥ ॥ पद सत्तरमुं॥राग भैरव ॥ ॥ जग सपनेकी माया रे॥ नर जग ॥ ए आंक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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