Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 65
________________ आनंदघनजी कृत पद. || पद नवाणुमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ अवधू ऐसो ज्ञान बिचारी, वामें कोण पुरुष कोण नारी ॥ अवधू० ॥ ए आंकणी ॥ बम्मनके घर न्हाती धोती, जोगी के घर चेली ॥ कलमा पढ पढ नई रे तुरकड़ी तो, यापही याप अकेली ॥ श्रवधू० ॥ ॥ १ ॥ ससरो हमारो बालो जोलो, सासू बाल कुंवा री ॥ पीयुजी हमारो होढे पारणीए तो, में हुं फूला वन हारी ॥ अवधू० ॥ २ ॥ नहीं हुं परणी नहीं हुं कुंवारी, पुत्र जणावनहारी ॥ काली दाढीको में कोई नहीं बोड्यो तो, हजुर हुं बाल कुंवारी ॥ अवधू०॥ ॥ ३ ॥ दी दीपमें खाट खटूली, गगन शीकुं तला ई ॥ धरतीको बेडो यानकी पीबोडी, तोय न सोड नराई ॥ अवधू ॥ ४ ॥ गगन मंगलमें गाय वी प्राणी, वसुधा, दूध जमाई ॥ सबरें सुनो नाइ वलोएं क्लोवे तो, तत्त्व मृत कोइ पाई ॥ अवधू ॥ ५ ॥ नहीं जाउं सासरीये ने नहीं जानं पीयरीये, पीयुजीकी सेज बिठाई ॥ नंदधन कहे सुनो भाई साधु तो, ज्योतसें ज्योत मिलाई ॥ अवधू ॥ ६ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकशोमं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ बेहेर बेहेर नही यावे, अवसर बेहेर बेहेर नही For Personal and Private Use Only ५‍ Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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