Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 64
________________ आनंदघनजी कृत पद. ५१ धन जूते जोबन, जूते है घर वासा ॥ आनंदघन कहे सबही जूते, साचा शिवपुर वासा ॥ या० ॥ ५ ॥ ॥ पद अजयुमुं॥ राग आशावरी॥ ॥ अवधू सो जोगी गुरु मेरा, श्न पदका करे रे निवेडा ॥ अवधू॥ ए आंकणी ॥ तरुवर एक मूल बिन बाया, बिन फूलें फल लागा ॥ शाखा पत्र नही कबू ननकू, अमृत गगने लागा॥ अ०॥ ॥ तरुवर एक पंडी दोन बेठे, एक गुरु एक चेला ॥ चेलेने जुग चुण चुण खाया, गुरु निरंतर खेला ॥ अ० ॥ ॥ २॥ गगन मंमलके अधबिच कूवा, उहां हे अमीका वासा ॥ सुगुरा होवे सो जर नर पीवे, नगुरा जावें प्यासा ॥ अ॥३॥ गगन मंमलमें गन्यां बिहानी, धरती दूध जमाया ॥ माखन था सो विरला पाया, बासें जगत नरमाया ॥ अ० ॥ ४ ॥ थड बिनुं पत्र पत्र बिनुं तुंबा, बिन जीन्या गुण गाया ॥ गावन वा लेका रूप न रेखा, सुगुरु सोही बताया ॥ अ० ॥५॥ आतम अनुनव बिन नहीं जाने,अंतर ज्योति जगावे ॥ घट अंतर परखे सोही मूरति, आनंदघन पद पावे.॥ अ० ॥ ६ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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