Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 62
________________ आनंदघनजीकृत पद. ॥ पद चोराणुमुं॥ राग शोरत ॥ ॥ निराधार केम मूकी, श्याम मुने निराधार केम मूकी ॥ कोइ नही हूं कोणा बोलू, सदु आलंबन ट्रंकी ॥ श्या० ॥ १ ॥ प्राणनाथ तुमें दूर पधास्या, मूकी नेह निराशी ॥ जजणना नित्य प्रति गुण गातां, जनमारो किम जासी ॥ श्या ॥ २ ॥ जेह नो पद लहीने बोलु, ते मनमां सुख आणे ॥जेह नो पद मूकीने बोलु, ते जनम लगें चित्त ताणे ॥ श्या० ॥ ३ ॥ वात तमारी मनमां आवे, कोण आगल जई बोलु ॥ ललित खलित खल जो ते देखु, आम माल धन खोलु ॥ श्या०॥४॥ घटें घटें बो अंतरजामी,मुजमां कां नवि देखुं॥जे देखु ते नजर न आवे, गुणकर वस्तु विशे ॥ श्या ॥ ५ ॥ अवधे केहनी वाटडी जोनं, विण अवधे. अति फूलं ॥ आनंदघन प्रनु वेग पधारो, जिम मन आशा पूरूं ॥ श्या० ॥ ६ ॥ इतिपदं ॥ ॥ पद पचाणुमुं॥ राग अलश्यो वेलावल ॥ ॥ऐसे जिनचरने चित्त व्यानं रे मना ॥ ऐसे अरिहंतके गुन गा रे मना ॥ ऐसे जिन ॥ ए आंकणी ॥ उदर नरनके कारणे रे, गौवां वनमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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