Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 56
________________ आनंदघनजी कृत पद. ४३ ॥ पद बाशीमुं॥ राग सूरति टोडी॥ ॥ प्रजु तोसम अवर न कोइ खलकमें, हरिहर ब्र ह्मा विगते सोतो, मदन जीत्यो तें पलकमें ॥प्र०॥ ॥१॥ ज्यों जल जगमें अगन बजावत, वडवानल सो पीये पलकमें॥ आनंदघन प्रजुवामा रे नंदन,तेरी हाम न होत हलकमें ॥ प्र० ॥ ५ इति पदं ॥ ॥ पद त्राशीमुं॥ राग मारु ॥ ॥ निःस्टह देश शोहामणो, निर्नय नगर नदार हो ॥ वसे अंतरजामी ॥ निर्मल मन मंत्री वडो, रा जा वस्तुविचार हो । वसे ॥ १॥ केवल कमला गार हो, सुण सुण शिवगामी ॥ केवल कमलानाथ हो, सुण सुण निःकामी ॥ केवल कमलावास हो, सुण सुण गुनगामी॥आतमा तूं चूकीश मां,साहेबा तूं चूकीश मां,राजिंदा तूं चूकीश मां,अवसर लही जी॥ए आंकणी ॥ दृढ संतोषकामामोदसा, साधु संगत दृढ पोल हो ॥ वसे ॥पोलियो विवेक सुजागतो, आगम पायक तोल हो ॥ वसे ॥ ५॥ दृढ विशवास विता गरो, सुविनोदी व्यवहार हो ॥ वसे ॥ मित्र वैराग विहडे नही,क्रीडा सुरति अपार हो ॥ वसे ॥३॥ जावना बार नदी वहे, समता नीर गंजीर हो ॥ व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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