Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 52
________________ आनंदघनजी कृत पद. ३॥ ॥ पद होतेरसु ॥ राग केदारो ॥ ॥ नोले लोगा हूं रडूं तुम नला हांसा, सलूणे साजन विण कैसा घर वासा ॥ नोले० ॥ १ ॥ सेज सुहाली चांदणी रात, फूलडी वाडी नर सीतल वात ॥ सघली सहेली करे सुख साता, मैरा तन ताता मूथा विरहा माता ॥ जो ॥ २॥ फिर फिर जोनं धरणी आगासा, तेरा निपणा प्यारे लोक तमासा ॥ न वले तनतें लोही मांसा, सांडानी बे घरणी बोडी निरासा ॥जो० ॥३॥ विरह कुनावसों मुज कीया, खबर न पावो तो धिग मेराजीया॥दही वायदो जो बतावै मेरा कोपीया, आवे आनंदघन करूं घर दीया॥नो०॥४॥ ॥ पद चम्मोतेरमुं॥ राग वसंत ॥ ॥या कबडकमरी कौन जात, जहां रीजे चेतन ग्यान गात ॥ या ॥ १ ॥ कुत्सित साख विशेष पा य, परम सुधारस वारि जाय ॥ या॥ ॥ जीया गु न जानो और नांही, गले पडेंगी पलक मांहि ॥ या० ॥३॥ रेखा बेदे वाही ताम, पढीयें मीठी सुगुण धा म ॥ या ॥४॥ ते आगें अधिकेरी ताही, आनंद घन अधिकेरी चाही ॥ या० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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