Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 25
________________ १२ आनंदघनजी कृत पद. उपजे विनसे कौन ॥ उपजे विनसे जो कहूँ प्यारे, नित्य अबाधित गौन ॥ निसा ॥३॥ सर्वागी सब नयधनी रे, माने सब परमान ॥नयवादी पल्लो ग्रही प्यारे, करे लरा नगन ॥ निसा ॥ ४ ॥ अनुनव अ गोचर वस्तु हे रे,जांनबो एही रे लाज॥ कहन सुननको कलु नही प्यारे, आनंदघन महाराज ॥ निसा ॥५॥ ॥पद बावीशमुं॥राग गोडी॥ ॥ विचारी कहा विचारे रे, तेरो आगम अगम थ थाह॥विण॥ए आंकणी॥ बिनु आधे आधा नही रे, बिन आधेय आधार ॥ मुरगी बिन इंमा नहीं प्यारे,या बिन मुरगकी नार ॥ वि० ॥१॥ नुरटा बीज विना नही रे, बीज न चुरटा टार ॥ निसि बिन दिवस घटे नही प्यारे, दिन बिन निसि निरधार ॥ वि० ॥२॥ सिम संसारी बिन नहि रे, सिम बिना संसार ॥ कर तां बिन करनी नहि प्यारे, बिन करनी करतार ॥ ॥वि०॥३॥ जामन मरण बिना नही रे, मरण न जनम विनाश ॥ दीपक बिन परकाशता प्यारे, बिन दीपक परकाश ॥ वि० ॥४॥ आनंदघन प्रनु वचन की रे, परिणतिधरोरुचिवंत ॥शाश्वत नाव विचारके प्यारे, खेलो अनादि अनंत ॥ वि०॥५॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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