Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 26
________________ आनंदघनजी कत पद. ॥ पद त्रेवीशमुं॥ राग आशावरी ॥ ॥ अवधू अनुनव कलिका जागी॥ मति मेरी या तम समरन लागी॥०॥ए आंकणी॥ जाये न क हुँ उरढिग नेरी, तेरी विनता वेरी ॥ मायाचेरी कुंटुंब करी हाथे, एक मेढ दिन घेरी ॥ ॥१॥ जरा जनम मरन वस सारी, असरन उनियां जेती॥ देढव कांइन बागमें मीयां, किसपर ममता एती॥ ॥१०॥ २ ॥ अनुनव रसमें रोग न सोगा, लोक वाद संबं मेटा॥ केवल अचल अनादि अबाधित, शिव शंकरका नेटा ॥ अ० ॥ ३॥ वर्षा बुंद समुश् समा नी, खबर न पावे कोई ॥ आनंदघन ठहै ज्योति स मावे, अलख कहावे सोई॥ अ० ॥४॥ इति पदं ॥ पद चोवीशमुं ॥ राग रामग्री ॥ ॥ मुने महारो कब मिलसे मनमेलू॥मु० ॥मनमे लुविण केलि न कलिये, वाले कवल कोश्वेतू ॥मु०१॥ आप मिव्याथी अंतर राखे, सुमनुष्य नही ते लेतू ॥ आनंदघन प्रनु मन मलियाविण,कोनवि विलगेचेन। ॥ पदपञ्चीशमुं ॥ राग रामग्री॥ ॥क्यारें मुने मिलशे माहारो संत सनेही क्यारे॥ ॥ टेक ॥ संत सनेही सूरिजन पाखे,राखे न धीरज दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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