Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 31
________________ १७ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद तेत्रीशमुं ॥ राग गोडी॥ ___॥ मिलापी आन मिलावो रे, मेरे अनुनव मीठडे मित्त ॥ मि ॥ चातक पीन पीन रटे रे, पीउ मिलाव न यान ॥ जीव पीवन पीन पीठ करे प्पारे, जीन नीन आन ए यांन ॥ मि० ॥१॥ मुखीयारी निस दिन रहूं रे, फिरूं सब सुध बुछ खोय ॥ तन मनकी कबहुँ लडं प्यारे, किसें दिखा रोय ॥ मि ॥ ॥ निसि अंधारी मुहि हसे रे, तारे दांत दिखाय ॥ नादो कादो में कीयो प्यारे, असुअन धार वहाय ॥ मि ला॥३॥ चित्त चातक पीन पीन करे रे, प्रणमे दो कर पीस ॥ अबलागुं जोरावरी प्यारे, एती न कीजें रीस ॥ मिला० ॥४॥अातुर चातुरता नही रे, सुनि समता टुक बात ॥ आनंदघन प्रनु आय मिले प्यारे, आज घरे हर जांत ॥ मिला० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥ पद चोत्रीशमुं ॥ राग गोडी॥ ॥ देखो बाली नट नागरको सांग ॥ दे॥ और ही और रंग खेलति तातें, फीका लागत अंग ॥ देण ॥१॥ औरह तो कहा दीजें बहुत कर, जीवित है जह ढंग ॥ मैरो और विच अंतर एतो, जैतो रू रंग ॥ दे॥३॥ तनु सुध खोय घूमत मन ऐसें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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