Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 28
________________ यानंदघनजी कृत पद. १५ थाके, माया धारी बाके || दुनियांदार डुनीसें लागे, दासा सब शाके ॥ ० ॥ २ ॥ बहिरातम मूढा जगजेता, मायाके फंद रहेता ॥ घट अंतर परमातम नावे, दुर्जन प्राणी तेता ॥ ० ॥ ३ ॥ खगपद ग गन मीनपद जलमें, जो खोजे सो बौरा ॥ चित पं कज खोजे सो चिन्हे, रमता यानंद चौंरा ॥ श्र०॥४॥ ॥ पद अहावीशमुं ॥ राग आशावरी ॥ ॥ याशा औरनकी क्या कीजें, ग्यान सुधारस पी जें ॥० ॥ ए यांकण ॥ नटके द्वारद्वार लोकनके, कूकर याशाधारी ॥ श्रातम अनुभव रसके रसीया, उतरे न कबहुं खुमारी ॥ आशा ० ॥ १ ॥ याशा दा सीके जे जाये, ते जन जगके दासा ॥ याशा दासी करे जे नायक, लायक अनुभव प्यासा ॥ आशा० ॥ ॥ २ ॥ मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अनि पर जाली ॥ तन जाती श्रंवटाइ पिये कस, जागे अनुभव लाली ॥ आशा० ॥ ३ ॥ अगम पीयाला पीयो मत वाला, चिन्ही अध्यातम वासा ॥ श्रानंदघन चेतन है खेले, देखे लोक तमासा ॥ श्राशा ० ॥ ४॥ इति पदं ॥ ॥ पद गात्रीशमुं ॥ राग श्राशावरी ॥ ॥ अवधू नाम हमारा राखे, सो परम महारस चा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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