Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 23
________________ आनंदघनजी कृत पद. ॥ पद-अढारमुं॥ राग मालकोश, रागणी गोडी॥ - रीसानी आप मनावो रे, विच वसीठ न फेर । री॥ सौदा अगम है प्रेमका रे, परख न बजे कोय ॥ ले देवाही गम पडे प्यारे, और दलाल न होय ॥ रीसा॥१॥ दो बातां जीयकी करो रे, मेटो मनकी आंट ।। तनकी तपत बूजाश्ये प्यारे, बचन सुधारस बांट ॥ रीसा ॥ २ ॥ नेक नजर निहारी रे, उजर न कीजें नाथ ॥ तनक नजर मुजरे मले प्यारे, अ जर अमर सुख साथ ॥ रीसा ॥३॥ निसि अं धियारी धनघटा रे, फावं न वाटके फंद ॥ करुणा करो तो वढं प्यारे, देखुं तुम मुख चंद ॥ रीसा ॥ ॥ ४ ॥ प्रेम जहां सुविधा नही रे, मेट कुराहित राज ॥ आनंदघन प्रठ बाय बिराजे, आपही सम तासेज ॥ रीसा० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद उगणीशमुं ॥ राग वेलावन ॥ ॥ उलह नारी तूं बडी बावरी, पिया जागे तूं सो वे ॥ पिया चतुर हम निपट अयानी, न जानें क्या होवे ॥ उल ॥१॥धानंदघन पिया दरस पियासें, खोल बूंघट मुख जोवे ॥ उल० ॥ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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