Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 17
________________ आनंदघनजी कृत पद. रेचक पूरक कुंनक सारी, मन इंडिय जयकासी॥मा० ॥४॥ थिरता जोग युगति अनुकारी, बापो श्राप वि मासी॥आतम परमातम अनुसारी, सीजे काज स मासी॥ मा० ॥ ५॥ इति पदं ॥ ॥पद सातमुं॥ ॥साखी॥जग आशा जंजीरकी, गति उलटी कुल मोर ॥ ऊकस्यो धावत जगतमें, रहे बूटो इक तोर ॥१॥ ॥राग आशावरी॥ ॥ अवधू क्या सोवे तन मठमें, जाग विलोक न घटमें ॥ अवधू॥ ए आंकणी ॥ तन मनकी परतीत न कीजें, ढहि परे एक पलमें ॥ हल चल मेट खबर ले घटकी, चिन्हे रमता जलमें ॥ अवधू० ॥ १ ॥ मतमें पंचनूतका वासा, सासाधूत खवीसा ॥ बिन बिन तोही बलनकू चाहे, समजे न बौरा सीसा ॥ वधू ॥ ॥ शिरपर पंच वसे परमेसर, घटमें सूबम बारी॥आप अन्यास लखे को विरला, निरखे धूकी तारी॥अवधू०॥३॥याशा मारीथासन घर घटमें, 'अजपा जाप जपावे ॥ आनंदघन चेतनमयमूरति, नाथ निरंजन पावे ॥ श्रवधू ॥ ॥ इति पदं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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