Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 10
________________ अनुक्रम ११२ १२६ १७० १५३ १४० १८३ १६३ १. प्रज्ञा-परिषह पर विजय कैसे प्राप्त हो ? २. गहना कर्मणो गतिः ३. सत्य ते असत्य दिसे ४. धर्माचरण निरर्थक नहीं जाता ५. श्रद्धा पाप-प्रमोचिनी ६. आध्यात्मिक दशहरा मनाओ ! ७. इहलोक मीठा, परलोक कोणे दिठा ८. अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता ६. सच्ची गवाही किसकी १०. का वर्षा जब कृषि सुखानी ११. जाए सद्धाए निक्खंते १२. सामान सौ बरस का, कल की खबर नहीं १३. सब टुकुर-टुकुर हेरेंगे." १४. संसार का सच्चा स्वरूप १५. एगोहं नत्थि मे कोई १६. अपना रूप अनोखा १७. हंस का जीवित कारागार १८. कर आस्रव को निर्मूल १६. संवर आत्म स्वरूप है २०. कर कर्म-निर्जरा, पाया मोक्ष ठिकाना २१. सोचो लोक स्वरूप को २२. हे धर्म ! तू ही जग का सहारा २३. ऊंघो मत पंथीजन ! २४. सुनकर सब कुछ जानिए २५. मोक्ष गढ़ जीतवा को २६. संघस्य पूजा विधिः २७. क्षमा वीरस्य भूषणम् २८. ऐरे, जीव जौहरी ! जवाहिर परखि ले ! २६. पकवान के पश्चात् पान २०५ २१३ w २२८ اسد . عمر २६८ २८४ سه سه Gc o . سه ३३७ ३५४ ३७८ ३६१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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