Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 9
________________ विग्रह, विद्रोह और कलह की आग धाँय-धाँय कर जल रही है। विघटनवाद के नगाड़े तेजी से बज रहे हैं । मस्तिष्क में भयंकर तूफान उठ रहे हैं, हृदय की धड़कनें बढ़ रही हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सभी परेशान हैं, व्यथित हैं । कहीं पर अमीरी और गरीबी की समस्या है और कहीं पर शोषक और शोषितों की समस्या है। इधर विश्व के गगन में अणु-अस्त्रों की विभीषिकाएँ भी मँडरा रही हैं, वे कब बरस पड़ेंगी, इसका किसी को कुछ पता नहीं। आज का विश्व मौत के केंगारे पर खड़ा है । मानवता मर रही है दानवता पुष्ट हो रही है, जीवन में आनन्द का अभाव है । ऐसी विकट-बेला में परम श्रद्धय आचार्य सम्राट राष्ट्र सन्त श्री आनन्द ऋषि जी महाराज के ये प्राणमय प्रवचन भौतिकता की चकाचौंध में अपने आपको भूले और बिसरे हुए मानव को सही दिशा-दर्शन देंगे । कर्तव्य-पथ पर बढ़ने की पुनीत प्रेरणा प्रदान करेंगे। महामहिम आचार्य प्रवर के इन प्रवचनों में अद्यतन कहानियों की तरह न शैली-शिल्प के गोरख-धन्धे ही हैं और न नवीन कविताओं की तरह भाषा की दुरूहता और भावों का उलझाव ही है, किन्तु जो कुछ भी है सहज है, सरल है, सुगम है । पाठक अनुभव करेंगे कि धर्म, दर्शन, अध्यात्म जैसे गुरु गम्भीर विषयों को भी किस प्रकार अपनी विलक्षण प्रतिभा, समन्वय-बुद्धि एवं चित्ताकर्षक सरल शैली से युगबोध की भाषा में प्रस्तुत किसा है। उनके प्रखर चिन्तन में धर्म और दर्शन के नये-नये उन्मेष खुलते हुए से प्रतीत होते हैं । आनन्द प्रवचन का यह सातवाँ भाग है, इसके पूर्व छः भाग प्रकाशित हो चुके हैं जो अत्यधिक लोकप्रिय हुए हैं। मुझे आशा ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि प्रस्तुत भाग भी जन-जीवन में अभिनव चेतना का संचार करेगा । इसी मंगल आशा के साथ सादड़ी-सदन गणेश पेठ, पूना-२ दिनांक २५-६-७५ -देवेन्द्र मुनि Jain Education Intermational Jain Education International For Personal & Private Use only For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org www.jsainelibre

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