Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 7
________________ माध्यम से वे आत्मिक गुणों को अंकुरित करते हुए अपने मानस को विशुद्ध एवं परिष्कृत बनायेंगे तथा अहिंसा, सत्य और संयम की शाश्वत आभा से अपने अंतर्मन को ज्योतिर्मान करेंगे। अन्त में केवल इतना ही कि आचार्यदेव के प्रवचन-संग्रहों के सभी भागों का संपादन करने का जो सुअवसर मुझे मिला है यह मेरे लिए बड़े गर्व और गौरव की बात है। साथ ही असीम हर्ष एवं सन्तोष इस बात का भी है कि पाठकों ने मेरे सम्पादन को पसन्द किया है। समय-समय पर यह ज्ञात होने से मुझे बड़ी प्रेरणा मिली है और मेरे उत्साह में अभिवृद्धि होती रही है । आशा है मेरे इस प्रयास को भी पाठक पसंद करेंगे तथा असावधानीवश कोई त्रुटि रह गई हो तो उदारतापूर्वक उसे क्षमा करते हुए प्रवचनों के मूल विषयों को हृदयंगम करेंगे । किं बहुना ... . -कमला जैन 'जीजी' एम. ए. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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