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मे इस रानी विट्ठलम्बाका पुत्र उक्त कामिराय प्रथमवगनरेन्द्र राजा हुआ । विजयवर्णी
ने उसे गुणार्णव और राजेन्द्रपूजिम लिखा है ।
प्रशस्ति मे बताया है -
स्याद्वादधर्मपरमामृतदत्तचित्त
सर्वोपकारिजिननाथपदाब्जभृग । कादम्बवश जलराशिसुधामयूख
श्रीरायबग नृपतिर्जगतीह जीयात् ।।
गर्वारूढविपक्षदक्षबलसघाताद्भुताडम्बरा
मन्दोद्गर्जनघोरनीरदमहासदोहझञ्झानिल ।
प्रोद्यद्भानुमयूखजालविपिनवातानलज्वालसा
दृश्योद्भासुरवीरविक्रमगुणस्ते रायवगोद्भव ।। कीर्तिस्ते विमला सदा वरगुणा वाणी जयश्रीपरा
लक्ष्मी सर्वहिता सुख सुरसुख दान निधान महत् ।
ज्ञान पीनमिद पराक्रमगुणस्तुगोनय कोमलो - रूप कान्ततर जयन्तनिभमो श्रीरायभूमीश्वर ।।'
कामिराय को विजयवर्णी पाण्ड्यवग का भागिनेय बताया है -
शृगारार्णवचन्द्रिका, ज्ञानपीठ सस्करण, 10/195/197, पृ0 120 ।