Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 623
________________ १६८ आवश्यक-मूलसूत्रम् -२. ४/२६ 'सव्वकामविरत्तय'ति सर्वकामविरक्तता भावनीया २२, इतितृतीयगाथासमासार्थः ।। _ 'पच्चक्खाणे'त्ति मूलगुणउत्तरगुणविषयं प्रत्याख्यानं कार्यमिति द्वारद्वयं २३-२४, 'विउस्सग्गे'त्ति विविध उत्सर्गो व्युत्सर्गः सच कार्य इति द्रव्यभावभेदभिन्नः, २५ अप्पमाए'त्तिन प्रमादोऽप्रमाद:, अप्रमादः कार्यः २६, ‘लवालवे त्ति कालोपलक्षणंक्षणे २ सामाचार्यनुष्ठानं कार्य २७, 'झाणसंवरजोगे'तिध्यानसंवरयोगश्च कार्यः,ध्यानमेव संवरयोगः, २८, ‘उदये मारणंतिए'त्ति वेदनोदये मारणान्तिकेऽपि न क्षोभः कार्य इति २९ चतुर्थगाथासमासार्थः ।। 'संगाणं च परिन्न'त्ति सङ्गानांचज्ञपरिज्ञाप्रत्याख्यानपरिज्ञाभावेन परिज्ञा कार्या ३०, पायच्छित्तकरणे इय' प्रायश्चित्तकरणं व कार्य ३१ आराधना य मरणंति'ति आराधना च मरणान्ते कार्या, मरणकाल इत्यर्थः, ३२ एते द्वात्रिंशद्द्योगसङ्ग्रहा इति पञ्चमगाथासमासार्थः । आद्यद्वाराभिधित्सयाऽऽहनि.(१२७९) उज्जेनि अट्टणे खलु सीहगिरिसोपारए य पुहइवई! . मच्छियमल्ले दूल्लकूविए फलिहमल्ले य ।। दृ- उज्जेनित्तिनयरी, तीए जियसत्तूरनो अट्टणो मल्लो अतीव बलवं, सोपारए पट्टणेपुहइवईराया सिंहगिरी नाम मल्लवल्लहो, पतिवरिसमट्टणजओहामिएण अनेन मच्छियमल्ले कए जिएण अट्टणेण भरुगच्छाहरणीए दूरुल्लकूवियाएगामे फलिहमल्ले कएत्ति । एवमक्षरगमनिकाऽन्यासामपिस्वबुद्ध्या कार्या, कथानकान्येव कथयिष्यामः, अधिकृतगाथाप्रतिबद्धकथानकमपि विनेयजनहितायोच्यतेउज्जेनीनयरीए जियसतू राया, तस्स अट्टणो मल्लो सव्वरलेसु अजेओ, इओ य समुदतीरे सोपारयं नयरं, तत्थ सीहगिरी राया, सोय मल्लाणं जो जिनइ तस्स बहुं दव्वं, सो व अट्टणो तत्थ गंतूण वरिसे २ पडायं गिण्हइ, राया चिंतेइ-एस अन्नाओ रजाओ आगंतूण पडायं हरइ, एस मम ओहावणत्ति पडिमल्लं मग्गइ, तेन एगो मच्छिओ दिह्रो वसं पिबंतो, बलं चसे विन्नासियं, नाऊणपोसिओ, पुनरवि अट्टणो आगओ, सो य किर महो होहितित्ति अनागयं चेव सयाओ नयराओ अप्पणो पत्थयणस्स अवल्लं भरिऊण अव्वाबाहेणं एइ, संपत्तो य सोपारयं, जुद्धे पराजिओ मच्छियमल्लेणं, गओ य सयं आवासं चिंतेइ, एयस्स वुड्डी तरुणयस्स मम हानी, अन्नं मलं मग्गइ, सुणइ य-सुरवाए अस्थित्ति, एएणभरुयच्छाहरणीए गामे दूरल्लकूवियाएकरिसगो दिट्ठो-एगेण हत्थेण हलं वाहेइएगेण फलहिओ उप्पाडेइ, तं च दखूण ठिओ पेच्छामि से आहारंति, आवल्ला मुक्का, भज्जा व से भत्तंगहाय आगया, पत्थिया, कूरस्स उज्झमजीएघडओपेच्छइ, जिमिओ सन्नाभूमिगओ, तत्थवि पेच्छइसव्वं वत्तियं, वेगालिओ वसहिं तस्स य घरे मग्गइ, दिन्ना, ठिओ, संकहाए पुच्छइ,-का जीविया ?, तेन कहिए भणइ-अहं अट्टणो तुम ईसरं करेमित्ति, तीसे भजाए से कप्पासमोल्लं दिन्नं, अवल्ला य, सा सवलद्धा उञ्जेनिं गया, वमनविरेयनानि कयाणि पोसिओ निजुद्धं च सिक्खाविओ, पुनरवि महिमाकाले तेनेव विहिना आगओ, पढमदिवसे फलहियमल्लो मच्छियमल्लो य जुद्धे एगोवि न पराजिओ, राया बिइयदिवसे होहितित्ति अइगओ, इमेवि सए सए आलए गया, अट्टणेण फलहियमल्लो भणिओकहेहि पुत्ता ! तेन कहियं, मक्खित्ताऽक्खेवेणं पुणनवीकयं, मच्छियस्सवि रन्ना संमद्दगा पेसिया, भणइ-अहं तस्स पिउपि न बिभेमि, को सो वराओ ? बितियदिवसे समजुज्झा, ततियदिवसे अंवियपहारो वइसाहं ठिओ मच्छिओ, अट्टणेण भणिओ फलिहित्ति, तेन फलहिग्गाहेण गहिओ सीसे, तं कुंडियनालगंपिव एगंतेपडियं, सक्कारिओ गओ उज्जेणिं, पंचलक्खणाणभोगाण आभागी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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