Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 651
________________ १९६ आवश्यक-मूलसूत्रम् -२. ४/२६ तेन मारिजइ, किह वा एस्सिंरुवं विणासेमित्ति उस्सारिता सव्वं परिकहेइ, लेहं चदरिसेइ, तेन सुजा एण भन्नइ-जंजाणसितंकरेइ, तेन भणियं-तुमंनमारेमित्ति, नवरंपच्छन्नं अच्छाहि, तेन चंदजसा भगिनी दिन्ना, सा य तज्जाइणी तीए सह अच्छइ, परिभोगदोसेण तं वट्टइ सुजायस्स ईसि संकेतं, सावि तेन साविया कया, चिंतेइ-मम कएण एसो विनवोत्ति संवेगमावन्ना भत्तं पञ्चक्खाइ, तेनं चेव निजामिया, देवो जाओ, ओहिं पउंजइ, दगुणागओ, वंदित्ताभणइ-किं करेमि?,सोविसंवेगमावनो चिंतेइ-जहा अम्मापियरोपेच्छिज्जामितोपव्वयामि, तेनदेवेण सिला विउव्विया नगरस्सुवरिं, नागरा राया य धूवपडिग्गहहत्था पायवडिया विनवेति, देवो तासेइ-हा! दासत्ति सुजाओ समणोवासओ अमच्चेण अकजे दूसिओ, अज्ज भे चूरेमि, तो नवरि मुयामि जइतं आणेह पसादेह नं, कहिं ?, सो भणइ-एस उज्जाने,सणायरो राया निग्गओखामिओ, अम्मापियरो रायाणंच आपुच्छित्ता पवइओ, अम्मापियरोवि अनुपव्वइयाणि, ताणि सिद्धाणि, सोऽविधम्मघोसो निध्विसओ आणतो जेणं तस्स गुणा लोए पयरंति, यथा नेत्रे तथा शीलं, यथा नासा तथाऽऽर्जवम् । यथारूपंतथा वित्तं, यथाशीलं तथा गुणाः ।। (अथवा)-विषमसमैर्विषमसमाः, विषमैर्विषमाः समैः समाचाराः । करचरणकर्णनासिकदन्तोष्ठनिरीक्षणैः पुरुषाः ।। पच्छासोय निव्वेयमावनो सच्चंमएभोगलोभेण विनासिओत्ति निगओ, हिंडतो रायगिहेनयरे थेराणंअंतिए पव्वइओ, विहरंतोबहुस्सुओवारत्तपुरंगओ, तत्थ अभयसेणो राया,वारत्तओ अमच्चो, भिक्खं हिंडतो वरतगस्स घरमंगओ धम्मघोसो, तत्थ महुघयसंजुतं पायसथालंनीणीयं, तओ बिंदु पडिओ.सो पारिसाडित्ति निच्छद, वारतओ ओलोयणगओ पेच्छइ, किंमन्ने नेच्छइ?, एवं चिंतेइ जाव (ताय) तत्थ मच्छिया उलीणा, ताओ घरकोइलिया पेच्छइ, तंपि सरडो, सरडंपि मजारो,तंपि पञ्चंतियसुणओ, तंपि वत्थव्वगसुणओ, ते दोविभंडणं लगा, सुणयसामी उवट्ठिया, भंडणं जायं, मारामारी, बाहिं निग्गया पाहुणगा बलं पिंडेता आगया, महासमरसंघाओ जाओ, पच्छा वारत्तगो चिंतेइ-एएण कारणेण भगवं नेच्छइत्ति, सोहणं अज्झवसाणं उवगओ, जाई संभरिया, संबुद्धो, देवयाए भंडगंउवनीयं, सो वारत्तरिसी विहरंतो सुसुमारपुरंगओ, तत्थ धुंधुमारो राया, तस्स अंगारवई धूया,साविया, तत्थ परिवायगा उवागया, वाए पराजिया, पदोसमावन्ना से सावत्तए पाडेमित्ति चित्तं फलए लिहित्ताउन्जेनीए पजोयस्स दंसेइ, पजोएणपुच्छियं, कहियं चणाए, पञ्जोओ तस्स दूयं पेसइ, सो धुंधुमारेण असक्कारिओ निच्छूढो, भणइपिवासाए-विणएणं वरिजइ, दूएणपडियागएण बहुतरगं पज्जोयस्स कहियं,आसुरुत्तो, सव्ववलेणं निग्गओ, सुंसुमारपुरं वेढेइ, धुंधुमारो अंतो अच्छइ, सो यवारतगरिसीएगत्थनागघरे चच्चरमूले ठिएल्लगो, सो रायाभीओ एसमहावलगोत्ति, नेमित्तगं पुच्छइ, सो भणइ-जाह-जाव नेमित्तं गेण्हामि, चेडगरुवाणि रमंति तानि भेसावियाणि, तस्स वारत्तगस्स मूलं आगयाणि रोवंताणि, तानि भणियाणि-मा बीहेहित्ति, सो आगंतूण भणइ-मा बीहेहित्ति, तुझंजओ, ताहे मज्झण्हे ओसनद्धाणं उवरि पडिओ, पजोओ वेढित्ता गहिओ, नयरि आणिओ, वाराणि बद्धाणि, पजोओ भणिओ-कओमुहो ते वाओ वाइ ?, भणइ-जं जाणसितं करेह, भणइ-किंतुमे महासासणेण वहिएण?,ताहे से महाविभूईए अंगारवई पदिन्ना, दाराणिमुक्काणि, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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