Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 740
________________ अध्ययनं - ६ - [ नि. १५६१ ] चउत्थपंचमघरेण १० ।। तिगेण चिंतिजमाणाणं दस चेव, कहं ?, पढममबियततियघरेण एक्को १ पढमबितिय उत्थघरेण २ पढमबितियपंचमघरेण ३ पढमतईयचउत्थघरेण ४ पढमततियपंचमघरेण ५ पढमचउत्थपंचमघरेण ६ बितियततियचउत्थघरएण ७ बितियततियपंचमघरेण ८ बितियचउत्थपपंचमधरण ९ ततियचउत्थपंचमघरेण १० | चउक्कगेण चिंतिजमाणाणं पंच हवंति, कहं ?, पढमबितियततियचउत्थघरेण एक्को पढमबितियततियपंचमघरेण २ पढममबितिय उत्थपंचमघरेण ३ पढमततियचउत्थपंचमघरेण ४ वितियतयितचउत्थपंचमघरेण ५, पंचगेण चिंतिजमाणाण एगो चेव भवतित्तिगाथार्थः । एत्थ य एक्कगेण य जे पंच संजोगा दुगेण जे दस इत्यादि, एएस चारणीयापओगेण आगयफलगाहाओ तिन्निवयमिक्कगसंजोगाण हुति पंचण्ह तीसईं भंगा । दुगसंजोगाण दसह तिनि सट्टा, सया हुति ||१|| संजोगाण दसह भंगसयं इक्कवीसई सट्टा । चउसंजोगाण पुणो चउससियाणिऽसीयाणि ॥२॥ सत्तुत्तरं सयाई छसत्ताइं च पंच संजोए । उत्तरगुण अविरयमेलियाण जाणाहि सव्वग्गं ॥३॥ सोलस चेव सहस्सा अट्ठसया चेव होंति अट्ठहिया । एसो उवासगाणं वयगहणविही समासेणं ॥ ४ ॥ व्याख्या- एताश्चतस्रोऽप्यन्यकृताः सोपयोगा इत्युपन्यस्ताः, एतासिं भावनाविही इमाधूलगपाणातिवातं पञ्चक्खाइ दुविहं तिविहेण १ दुविहं दुविहेणं २ दुविहं एक्कविहेणं ३ एगविहं तिविहेण ४ एगविहं दुविहेण ५ एगविहं एगविहेण ६, एवं थूलगमुसावाय अदत्तादाणमेहुणपरिग्गहेसु, एक्केके छभेदा, एए सव्वेवि मिलिया तीसं हवंतित्ति, ततश्च यदुक्तं प्राक् 'वयएक्कग संजोगाण होंती पंचण्ह तीसई भंग' त्ति तद् भावितं, इदानिं दुगचारणिया-थूलगपाणाइवायं थूलगमुसावायं पञ्चक्खाति दुविहंतिविहेण १ थूलगपाणाइवायं दुविहंतिविहेण, धूलगमुसावायं पुन दुविहं दुविहेण २, थूलगपपाणाइवायं २-३ थूलगमुसावायं पुन दुविहं एगविण ३ थूलगपाणाइवायं २-३ थूलगमुसावायं पुन एगविहंतिविहेण ४ थूलगपाणाइवार्य २-३ धूलगमूसावायं पुन एगविहं दुविहेण ५ थूलगपाणातिवायं २-३ थूलगमुसावायं पुन एगविहंएगविण ६, एवं धूलग अदत्तादाणमेहुणपपरिग्गहेसु एक्केके छब्भंगा, सव्वेविं मिलिया चउव्वीसं, एए य थूलगपाणाइवायं पढमघरगेममुंचमाणेण लद्धा, एवं बितियादिधरएसु पत्तेयं चउब्बीस हवंति, एए य सव्वेवि मिलिया चोयालं सयं, चालिओ थूलगपाणाइवाओ, इदानिं धूलगमुसावायाए चिंतिजइ-तत्थ थूलगमुसावायं थूलग अदत्तादाणं पञ्चक्खाति दुविहं तिविहेणं १ थूलगमुसावार्य दुविहं तिविण अदत्तादाणं पुन दुविहं दुविहेण २ एवं पुव्वकमेण छब्भंगा नायव्वा, एवं मेहुणपरिग्गहे पत्तेयं पत्तेयं छ २, सव्वेवि मिलि अट्ठारस, एते मुसावायं पढमघरगममुंचमाणेण लद्धा १८, एवं बीयादिघरे सुवि पत्तेयं २ अट्ठारस २ भवन्ति, एए सव्वेवि मेलिया अनुत्तरं सयंति, चारिओ थूलगमुसावाओ, इदानिं धूलगादत्तादाणादिं चिंतिज्जति, तत्थ थूलगादत्तादाणं धूलगमेहूणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २८५

Loading...

Page Navigation
1 ... 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808