Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अध्ययनं-५- [नि. १५४६]
२७५
नि. (१५४६) घोडग लयाइ खंभे कुड्डे माले अ सवरि वहु नियले ।
लंबुत्तर थण उद्धी संजय खलि (णे य) वायसकविढे ।। नि. (१५४७) सीसुकंपिय सूई अंगुलिभमुहा य वारुणी पेहा ।
नाहीकरयलकुप्पर उस्सारिय पारियंमि थुई ॥ आसुव्य विसमपायं गायं ठावित्तु ठाइ उस्सग्गे । कंपइ काउस्सग्गे लयव्व खरपवणसंगणं ॥१॥ खंभे वा कुड्डे वा अवठंभिय ठाइ काउसग्गं तु । माले य उत्तमंग अवलंभिय ठाइ उस्सग्गं ॥२॥ सबरी वसनविरहिया करेहि सागारियं जह ठवेइ । ठइऊण गुज्झदेसं करेहि तो कुणइ उस्सग्गं ।।३।।
अवणामिउत्तमंगो काउस्सग्गं जहा कुलबहुव्व । नियलियओविब चलणे वित्थारिय अहव मेलविउं ॥४॥
काऊण चोलपट्टे अविधीए नाभिमंडलस्सुवरि । हिट्ठा य जाणुमित्त चिट्ठई लंबुत्तरुस्सग्गं ॥५॥ उच्छाईऊण य थणे चोलगपट्टेण ठाइ उस्सग्गं ।
दंसाइरक्खणट्ठा अहवा अन्नाणदोसेणं ॥६॥ मेलित्तु पण्हियाओ चलणे विस्थाऊिण बाहिरओ ।
ठाउस्सग्गं एसो बाहिरउद्धी मुणेयब्बो ॥७॥ अंगुढे मेलविउं वित्यारिय पण्हियाओ बाहिं तु । ठाउस्सग्गं एसो भणिओ अब्भितरुद्धित्ति ॥८॥
कप्पं वा पट्ट वा पाइणिउं संजइव्व उस्सग्गं । ठाइ य खलिणं व जहा रयहरणं ग्गओ काउं॥९॥ भामेइ तहा दिट्ठि चलचित्तो वायसुव्व उस्सग्गो । छप्पइआण भएणं कुणई अ पढें कविढं व ॥१०॥ सीसं पंकपमाणे जक्खाइट्ठव्व कुणइ उस्सग्गं ।। मूयव्व हुअहुअंतो तहेव छिज्जंतमाईसु ।।११॥ अंगुलिभमुहाओवि य चालतो तहय कुणइ उस्सग्गं ।
आलावगगणणट्ठा संठवणत्थं च जोगाणं ।१२।। काउस्सग्गमि ठिओ सुरा जह वुडबुडेह अव्वत्तं । अनुपेहंतो तह वानरुव्व चालेइ ओट्ठउडे ।।१३।। एए काउस्सग्गं कुणमाणेण विबुहेण दोसा उ ।
सम्मं परिहरियव्वा जिनपडिकुट्टत्तिकाऊणं ॥१४॥ 'नाभीकररयलकुप्पर उस्सारे पारियमि थुइ'त्ति नियुक्तिगाथाशकलं लेशतोऽदुष्टकायोत्सर्गावस्थानप्रदर्शनपरं विध्यन्तरसंग्रहपरं च, तत्र 'नाभित्ति नाभीओ हेट्ठी चोलपट्टो
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