Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 725
________________ आवश्यक मूलसूत्रम् - २- ५ / ६० परिहीनो विभागे खेत्तं काऊण विहरति, नवविमष्पविहारी पुन उउबद्धे अट्ठ मासा मासकप्पेण विहरति, एए अट्ठ विगप्पा, वासावासं एगंमि चेव ठाणे करेंति, एस नवविगप्पो, अत्राचार्यो भणति मत्यरण वंदामि अपि तेसिंति, अन्ने भांति अहमवि वंदावेमित्ति, तओ अप्पगं गुरूणं निवेदंति चउत्थखामणासुत्तेणं, तच्छेदं मू. (६१) इच्छामि खमासमणो ! उवडिओमि तुम्भण्हं संतियं अहा कप्पं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा (स्यहरणं वा) अक्खरं वा पयं वा गाहं वा सिलोगं वा (सिलोगद्धं वा ) अहं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा तुब्भेहिं (सम्म) चियत्तेण दिन्नं मए अविणएण पडिच्छियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं वृ-निगदसिद्धं, आयरिओ भांति 'आयरियसंतियं'त्ति य अहंकारवज्रणत्थं, किं ममात्रेति, तओ जं विणइया तमणुसद्धिं बहु मन्नति पंचमखामणासुत्तेण तच्चेदं २७० मू. (६२) इच्छामि खमासमणो ! कथाइं च मे कितिमम्माई आयारमंतरे विनयमंतर सेहिओ सेहाविओ संगहिओ उवगहिओ सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ अब्भुट्टिओऽहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चातुरंतसंसारकंताराओ साहद्दु नित्थरिस्सामित्तिकड्ड सिरसा माणसा मत्थएण वंदामि । वृ-निगदसिद्धं, संगहिओ-नाणादीहिं सारिआ-हिए पवत्तिओ वारिओ-अहियाओ निवत्तिओ चोइओ-खलणाए पडिचोइओ - पुणो २ अवत्थं उवट्टिउत्ति, पच्छा आयरिओ भणइ- 'नित्थारगपारग' त्ति नित्थारगपारगा होहत्ति, गुरुणोत्ति, एयाई वणयाइति वक्कसेसमयं गाथार्थः ॥ एवं सेसाणवि साहूणं खामणावंदणं करेंति, अह वियालो वाघाओ वा ताहे सत्तण्हं पंचण्हं तिह वा, पच्छा देवसिय पडिक्कंमंति, केइ भांति - सामण्णेणं, अन्ने भांति खामणाइयं, अन्ने चरित्रसग्गाइयं, सेजदेवयाए य उस्सग्गं करेंति, पडिक्कंताणं गुरूसु बंदिएसु वढमाणीओ तिन्नि थुइओ आयरिया भणति इमेवि अंजलिमउलियग्गहत्था समत्तीए नमोक्कारं करेंति, पच्छा सेसगावि भणंति, तद्दिवसं नवि सुत्तपोरिसी नवि अत्थपोरुसी थुईओ भांति जस्स जत्तियाओ एंति, एसा पक्खियपडिक्कमणविही मूलटीकाकारेण भणिया, अन्ने पुन आयरणाणुसारेण भांति - देवसिए पडिक्कंते खामिए य तओ पढमं गुरू चेव उट्ठित्ता पक्खियं खामेति जहाराइणियाए, तओ उवविसंति, एवं सेसगावि जहाराइणिया खामेत्ता उवविसंति, पच्छा वंदित्ता भणति देवसियं पडिक्कतं पक्खियं पडिक्कमाचेह, इत्यादि पूर्ववत्, एवं चाउमासियंपि, नवरं काउस्सग्गे पंचुस्साससयाणि, एवं संवच्छरियंपि नवरं काउस्सम्मो अट्ठसहस्सं उस्सासाणं, चाउमासियसंवच्छरिएसु सव्वेवि मूलगुणउत्तरगुणाणं आलोयणं दाउं पडिक्कमंति, खेत्तदेवयाए उस्सग्गं करेंति, केई पुन चाउमासिगे सिजदेवयाएवि उस्सगं करेंति, पभाए य आवस्सए कए पंचकल्लाणगं गिण्हंति, पुव्वगहिए य अभिग्गहे निवेदेति, अभिग्रहा जइ संमं णाणुपालिया तो कुइयकक्कराइयस्स उस्सग्गं करेति, पुणोऽवि अन्ने गिण्हंति, निरभिग्गहाण न वट्टइ अच्छिउं, संवच्छरिए य आवस्सए कए पाओसिए पज्जोसवणा कप्पो कट्टिज्जति, सो पुन पुव्वि च अनागयं पंचरतं कहिजइ य, एसा सामायारित्ति, एनामेव कालतः उपसंहरन्नाह भाष्यकारः [ भा. २३२ ] चाउम्मासियवरिसे आलोअण नियमसो हु दायव्वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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