Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अध्ययनं-४- [नि. १३०९]
१९९ इहलोए फलं परलोए न नजइ किं होतित्ति संबुद्धो, ओहिनाणं, भणइ भवियव्वं भो खलु सव्वकामविरत्तेणं अज्झयणं भासइ, धूया विरत्तेण संजतीण दिन्ना, सोवि सिद्धो । एवं सव्वकामविरजिएणजोगासंगहिया भवंति । सव्वकामविस्तयत्तिगयं २२,इदानि पञ्चक्खाणित्ति, पच्चक्खाणं च दुविहं-मूलगुणपञ्चक्खाणं उत्तरगुणपच्चक्खाणंच,मूलगुणपञ्चक्खाणे उदाहरणगाहानि.(१३१०) कोडीवरिसचिलाए जिनदेवे रयणपुच्छ कहणाय ।
साएए सत्तुंजे वीरकहणाय संबोही ।। वृ-कथानकादवसेया, तच्चेदं-साएए सत्तुंजए राया, जिनदेवो सावगो, सो दिसाजत्ताए गओ कोडीवरिसं,ते मिच्छा, तत्थ चिलाओ राया, तेन तस्स रयणाणि अन्नागारे पोत्ताणि मणी य जाणि तत्थ नस्थिताणि ढोइयाणि, सोचिलाओ पुच्छइ-अहो रयणाणि रुवियाणि, कहिएयाणि रयणाणि?, साहइ-अम्ह रज्जे, चिंतेइ-जइ नाम संबुज्झेज्जा, सो राया भणइ-अहंपि जामि रयणाणि पेच्छामि, तुझं तणगस्स रनो बीहेमि, जिनदेवो भणइ-मा बीहेहि, ताहे तस्स रन्नो लेहं पेसेइ, तेन भणिओएउत्ति,आनिओसावगेण, सामीसमोसढो, सेत्तुंजओनिग्गओसपरिवारो महया इड्डीए, सयणसमूहो निगओ, चिलाओ पुच्छइ-जिनदेवो! कहिं जणोजाइ!, सोभणइ-एस सोरयणवाणियओ, भणइतो जामो पेच्छामोत्ति, दोविजणा निगाया, पेच्छंतिसामिस्स छत्ताइछत्तं सीहासनं, विभासा, पुच्छइकहं स्यणाई, ताहे सामी भावरयणाणि दव्वरयणाणि य पन्नवेइ, चिलाओ भणइ-मम भावरयणाणि देहित्ति भणिओ रयहरणगोच्छगाइ साहिजंति, पव्वइओ, एयं, मूलगुणपच्चक्खाणं, इदानि उत्तरगुणपच्चक्खाणं, तत्रोदाहरणगाहानि. (१३११) वाणारसी य नयरी अनगारे धम्मघोस धम्मजसे ।
मासस्स यपारणए गोउलगंगा व अनुकंपा ।। वृ-कथानकादवसेया, तच्चेदं-वाणारसीए दुवे अनगारा वासावासं ठिया-धम्मघोसो धम्मजसो य, ते मासं खमणेण अच्छंति, चउत्थपारणाए मा नियावासो होहितित्ति पढमाए सज्झायं बीयाए अत्थपोरिसी तइयाए उग्गाहेत्ता पहाविया, सारइएणं उन्हेणं अज्झाहया तिसाइया गंगं उत्तरता मनसावि पाणियं न पत्थेति, उत्तिन, गंगादेवया आउठा, गोउलाणि विउव्वित्ता सपाणीया गोवगा दधिविभासा, ताहे सद्दावेइ-एह साहू भिक्खं गेण्ह, ते उवउत्ता दगुण ताण रुवं, सा तेहिं पडिसिद्धा पहाविया, पच्छा ताए अनुकंपाए वासवद्दलं विउव्वियं, भूमी उल्ला, सियलेण वाएणअप्पाइया गाम पत्ता, भिक्खं गहियं, एवं उत्तरगुणा न भगा ! एवं उत्तरगुणपञ्चक्खाणं २३, पच्चक्खाणित्ति गयं २३ ।इदानिं विउस्सगेत्ति, विउस्सगोदुविहो-दव्वओभावओय, तत्थ दव्वविउस्सग्गे करकंडादओ उदाहरणं, तथाऽऽह भाष्यकारःभा. (२०५) करकंडु कलिंगेसु, पंचालेसुय दुम्मुहो ।
नमीराया विदेहेसु, गंधारेसु य नगती ।। भा.(२०६) वसभे यइंदकेऊ वलए अंबे य पुप्फिएबोही।
करकंडुदुम्मुहस्सा, नमिस्स गंधारस्नोय ।। वृ-इमीए वक्खाणं-चंपाए दहिवाहनो राया, चेडगधूया पउमावई देवी, तीसे डोहलो-किहऽहं
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