Book Title: Agam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
२१६
आवश्यक-मूलसूत्रम् -२. ४/२९ एए महामहा खलु एएसिं चेव पाडिवया ।। वृ-आसाढी-आसाढपुन्निमा, इह लाडाण सावणपुन्निमाए भवति, इंदमहो आसोयपुन्निमाए भवति, 'कत्तिय'त्ति कत्तियपुनिमाए चेव सुगिम्हओ-चेत्तपुन्निमा, एए अंतिमदिवसा गहिया, आई उपुणजत्थ जत्थविसएजओ दिवसाओमहमहा पवतंतितओदिवसाओ आरब्भ जाव अंतदिवसो ताव सज्झाओन कायव्यो, एएसिंचेवपुन्निमाणंतरंजेबहुलपडिवयाचउरो तेवि वज्जियत्ति गाथार्थः पडिसिद्धकाले करेंतस्स इमे दोसानि.(१३३९) कामंसुओवओगोतवोवहाणं अनुत्तरंभणियं ।
पडिसेहियंमि काले तहावि खलु कम्मबंधाय ।। नि. (१३४०) छलया वसेसएणं पाडिवएसुंछणाणुसजंति ।
महबाउलत्तनेनं असारिआणं च संमाणो ।। नि.(१३४१) अन्नयरपमायजुयं छलिज अप्पिड्डिओन उण जुत्तं ।
अद्धोदहिटिइ पुणछलिज जयणोवउत्तंपि ।। वृ- सरागसंजओ सरागसंजयत्तणओ इंदियविसयाअन्नयरपमायजुत्तो हविज्ञ स विसेसओ महामहेसु तं पमायजुतं पडणीया देवया छलेज । अप्पिड्डिया खेत्तादि छलणं करेज, जयणाजुतं पुण साहुं जो अप्पिड्डिओ देवो अद्धोदहीओ ऊणठिईओ न चएछलेउ, अद्धसागरोवठितीओ पुण जयणाजुतंपिछलेजा । अस्थि से सामत्थं जंतंपिपुव्यावरसंबंधसरणओ कोइ छलेज्जत्ति गाथार्थः 'चंदिमसूरुवरागत्ति' अस्या व्याख्या- . नि. (१३४२) उक्कोसेण दुवालसचंदु जहन्नेण पोरिसीअट्ठ ।
सरोजहन्न बारस पोरिसी उक्कोस दो अट्ठ ।। वृ-चंदो उदयकाले गहिओ संदूरियराईएचउरो अन्नं च अहोरत्तं एवं दुवालस, अहवा उप्पायगहणे सव्वराइयं गहणं, सग्गहो चेव निबुड्डो संदूसियराईए चउरो अन्नं च अहोरत्तं एवं बारस । अहवा अजाणओ, अब्भछन्ने संकाए न नज्जइ, केवलं ग्रहणं, परिहरिया राई पहाए दिलै सग्गहो निब्बुडो अनं च अहोरत्तं एवं दुवालस । एवं चंदस्स, सूरस्स अत्थमणगहणे सगहनिब्बुडो, उवहयरादीए चउरो अन्नंच अहोरतं एवं वारस | अह उदयंतो गहिओ तो संदूसिए अहोरते अठ्ठ अन्नंच अहोरतं परिहरइ एवं सोलस, अहवा उदयवेलाए गहिओ उप्पाइयगहणेण सव्वं दिणं गहणं होउंसगहो चेव निब्बुडो, संदूसियस्स अहोरतस्स अट्ठ अन्नंच अहोरतएवं सोलस अहवा अब्भच्छन्नेन नजइ, केवलं होहिति गहणं, दिवसओ संकाए न पढियं, अस्थमणवेलाए दिळं गहणं सग्गहो निब्बुडो, संदूसियस्स अट्ठ अन्नं च अहोरतं एवं सोलसत्ति गाथार्थः ।। नि.(१३४३) सणहनिब्बुड एवं सूराई जेण हुंतिऽहोरता ।
आइन्नं दिनमुक्के सुच्चिय दिवसो अ राईय ।। वृ-सहनिव्वुडे एगंअहोरतं उवहयं, कहं?, उच्यते, सूरादीजेन होतिऽहोरतं,सुरउदयकालाओ जेन अहोरत्तस्स आदी भवति तं परिहरितुं संदूसिअं अन्नप अहोस्तं परिहरियव्वं ! इमं पुण आइन्नंचंदो रातीए गहिओराईचेव मुक्को तीसे राईइ सेसं वजणीयं, जम्हा आगामिसूरुदए अहोरतसमत्ती,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808