Book Title: Agam Sutra Satik 07 Upashakdasha AngSutra 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
२७८
उपासकदशाङ्गसूत्रम् १/१५
॥२॥
एवं उक्को सेणं एक्कारसमास जाव विहरेइ । एक्काहाइपरेणं एवं सव्वत्थ पाएणं ।।' इति
मू. (१६) तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेगं पग्गहियेणं तवोकम्मेणं सुक्केजाव किसे धमणिसंतए जाए। तए णं तस्स आनंदस्स समणीवासगस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्ता जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए ५
एवं खलु अहं इमेणं जाव धमणिसंतए जाए, तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे सद्धाधिइसंवेगे, तंजाव ता मे अत्थि उट्टाणे सद्धाधिइसंवेगे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिने सुहत्थी विहरइ ताव ता मे सेयं कल्लं जाव जलन्ते अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाझूसणाझूसियस्स भत्तपानपडियाइविक्खयस्स कालं अणवर्क खमाणस्स विहरित्तए, एवं सम्पेहेइ २ त्ता कल्लं पाउ जाव अपच्छिममारणंतिय जाव कालं अनवकखंमाणे विहरइ ॥
तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसणेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने, पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे पंचजोयणसइयं खेत्तं जाणइ पासइ, ।
एवं दक्खिणं पञ्चत्थिमेण य, उत्तरेणं जाव चुल्लहिमवन्तं वासघरपव्वयं जाणइ पासइ, उड़ जाव सोहम्मं कप्पं जागइ पासइ, अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्छुयं नरयं चउरासीइवाससहस्साट्ठिइयं जाणइ पासइ ।
मू. (१७) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए, परिसा निग्गया, जाव पडिगया,
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्ररिसहनारायसङ्घयणे कणगलगनिधसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे घोरतवे महातवे उराले घोर गुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढरीरे संखित्तविउलतेउलेसे छट्टं छट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणंतवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
तणं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ बिइयाए पोरिसीए झाणं झाय, तइयाए पोरिसीए अतुरियं अचवलं असंभंते मुहपत्तिं पडिलेहेइ २ ता भायणवत्थाई पडिलेइ २ ता भायणवत्थाई पमज्जइ २ ता भायणाई उग्गाहेइ २ त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ २ ता एवं व्यासीइच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए छट्ठक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदागस्स भिक्खायरियाए अडित्तए, अहासु देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह । तए णं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण अब्भगुण्णाए समाणे सम० भग० महावीररस अंतियाओ दूइपलासाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ २ त्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतर परिलोयणाए दिट्ठीए पुरओ इरियं सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता वाणिय े उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/699336436ba0e78c13445f41617545722fd7ceaf5e1d920bfd88b8aac977b085.jpg)
Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80