Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 6
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक सूत्र - ११ आवेश-वश यदि शिष्य कोई चाण्डालिक व्यवहार कर भी ले तो उसे कभी भी न छिपाए । किया हो तो किया' और न किया हो तो नहीं किया' कहे। सूत्र - १२ जैसे कि गलिताश्व को बार-बार चाबुक की जरूरत होती है, वैसे शिष्य गुरु के बार-बार आदेश-वचनों की अपेक्षा न करे । किन्तु जैसे आकीर्ण अश्व चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है, वैसे योग्य शिष्य गुरु के संकेतमात्र से पापकर्म छोड़ दे । सूत्र-१३ आज्ञा में न रहने वाले, बिना विचारे बोलने वाले दुष्ट शिष्य, मृदु स्वभाव वाले गुरु को भी क्रुद्ध बना देते हैं। और गुरु के मनोनुकूल चलनेवाले एवं पटुता से कार्य करनेवाले शिष्य शीघ्र ही कुपित होनेवाले दुराश्रय गुरु को भी प्रसन्न कर लेते हैं। सूत्र - १४ बिना पूछे कुछ भी न बोले, पूछने पर भी असत्य न कहे । यदि कभी क्रोध आ जाए तो उसे निष्फल करेआचार्य की प्रिय और अप्रिय दोनों ही शिक्षाओं को धारण करे । सूत्र - १५ स्वयं पर ही विजय प्राप्त करना । स्वयं पर विजय प्राप्त करना ही कठिन है। आत्म-विजेता ही इस लोक और परलोक में सुखी होता है। सूत्र-१६ शिष्य विचार करे- अच्छा है कि मैं स्वयं ही संयम और तप के द्वारा स्वयं पर विजय प्राप्त करूँ | बन्धन और वध के द्वारा दूसरों से मैं दमित किया जाऊं, यह अच्छा नहीं है।' सूत्र - १७ लोगों के समक्ष अथवा अकेले में वाणी से अथवा कर्म से, कभी भी आचार्यों के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए। सूत्र-१८ अर्थात् आचार्यों के बराबर या आगे न बैठे, न पीठ के पीछे ही सटकर बैठे, गुरु के अति निकट जांघ से जांघ सटाकर न बैठे । बिछौने पर बैठे-बैठे ही गुरु के कथित आदेश का स्वीकृतिरूप उत्तर न दे। सूत्र - १९ गुरु के समक्ष पलथी लगाकर न बैठे, दोनों हाथों से शरीर को बांधकर न बैठे तथा पैर फैलाकर भी न बैठे सूत्र- २० गुरु के प्रासाद को चाहने वाला मोक्षार्थी शिष्य, आचार्यों के द्वारा बुलाये जाने पर किसी भी स्थिति में मौन न रहे, किन्तु निरन्तर उनकी सेवा में उपस्थित रहे। सूत्र - २१ गुरु के द्वारा बुलाए जाने पर बुद्धिमान् शिष्य कभी बैठा न रहे, किन्तु आसन छोड़कर उनके आदेश को यत्नपूर्वक स्वीकार करे। सूत्र - २२ आसन अथवा शय्या पर बैठा-बैठा कभी भी गुरु से कोई बात न पूछे, किन्तु उनके समीप आकर, उकडू मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 6

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