Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक [४३] उत्तराध्ययन मूलसूत्र-४- हिन्दी अनुवाद अध्ययन-१-विनयश्रुत सूत्र-१ जो सांसारिक संयोगो से मुक्त है, अनगार है, भिक्षु है, उसके विनय धर्म का अनुक्रम से निरूपण करूँगा, उसे ध्यानपूर्वक मुझसे सुनो। सूत्र -२ जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, गुरु के सान्निध्य में रहता है, गुरु के इंगित एवं आकार-को जानता है, वह विनीत' है। जो गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करता है, गुरु के सान्निध्य में नहीं रहता है, गुरु के प्रतिकूल आचरण करता है, असंबुद्ध है-वह अविनीत' है । सूत्र-४ जिस प्रकार सड़े कान की कुतिया घृणा के साथ सभी स्थानों से निकाल दी जाती है, उसी प्रकार गुरु के प्रतिकूल आचरण करने वाला दुःशील वाचाल शिष्य भी सर्वत्र अपमानित करके निकाला जाता है। सूत्र-५ जिस प्रकार सूअर चावलों की भूसी को छोड़कर विष्ठा खाता है, उसी प्रकार पशुबुद्धि शिष्य शील छोड़कर दुःशील में रमण करता है। सूत्र-६ अपना हित चाहनेवाला भिक्षु, सड़े कान वाली कुतिया और विष्ठाभोजी सूअर के समान, दुःशील से होनेवाले मनुष्य की हीनस्थिति को समझ कर विनय धर्म में अपने को स्थापित करे। सूत्र-७ इसलिए विनय का आचरण करना जिससे कि शील की प्राप्ति हो । जो बुद्धपुत्र है-वह कहीं से भी निकाला नहीं जाता। सूत्र -८ शिष्य गुरुजनों के निकट सदैव प्रशान्त भाव से रहे, वाचाल न बने । अर्थपूर्ण पदों को सीखे । निरर्थक बातों को छोड़ दे। सूत्र-९ गुरु के द्वारा अनुशासित होने पर समझदार शिष्य क्रोध न करे, क्षमा की आराधना करे । क्षुद्र व्यक्तियों के सम्पर्क से दूर रहे, उनके साथ हंसी, मज़ाक और अन्य कोई क्रीड़ा भी न करे। सूत्र - १० शिष्य आवेश में आकर कोई चाण्डलिक कर्म न करे, बकवास न करे । अध्ययन काल में अध्ययन करे और उसके बाद एकाकी ध्यान करे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 5

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