Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ से व्यक्ति अपने जीवन के नक्शे को बदल सकता है, यह इस उपांग में स्पष्ट किया गया है। श्रमण भगवान महावीर और तथागत बुद्ध के समय मगध में एकतन्त्रीय राज्यप्रणाली थी। यह पागम उस युग की सामाजिक स्थिति को जानने के लिये अत्यन्त उपयोगी है। पुफिया : पुष्पिका तृतीय उपांग पुष्पिका है। इस उपांग में भी चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिक, पूर्णभद्र, मणिभद्र, दत्त, शिव, बल और अनादृत, ये दस अध्ययन हैं। / प्रथम अध्ययन में वर्णित है-भगवान् महावीर एक बार राजगृह में विराज रहे थे। उस समय ज्योतिष्क इन्द्रचन्द्र भगवान के दर्शन हेतु प्राया / उसने विविध प्रकार के नाट्य किये / गणधर गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् ने उसके पूर्व भव का कथन किया। इसी प्रकार दूसरे अध्ययन में सूर्य के भगवान् के समवसरण में विमान सहित आगमन, नाट्य विधि और भगवान का पूर्वभवकथन आदि का वर्णन है। तीसरे अध्ययन में शुक्र महाग्रह का वर्णन है / इस अध्ययन में भगवान महावीर के दर्शन हेतु शुक्र पाया और पूर्ववत् नाट्य विधि दिखाकर पुनः अपने स्थान पर लौट गया / भगवान् ने उसके पूर्वभव का कथन करते हुए कहा-यह वाराणसी में सोमिल नामक ब्राह्मण था। वेदशास्त्रों में निष्णात था / एक बार भगवान पार्श्व वाराणसी पधारे / सोमिल, भगवान पार्श्व के दर्शन हेतु गया और उसने भगवान से प्रश्न किये-भगवन ! आपकी यात्रा है ? आपके यापनीय हैं ? सरिसव, मास और कुलत्थ भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? आप एक हैं या दो हैं ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर भगवान ने स्याद्वाद की भाषा में दिया। यहाँ पर यह स्मरण रखना चाहिये कि यह सोमिल जिसने भगवान पार्श्व से प्रश्न किये, और भगवतीसूत्र के 18 वें शतक के 10 वें उद्देशक में वणित सोमिल ब्राह्मण, जिसने इसी प्रकार के प्रश्न भगवान महावीर से किये थे, दोनों दो भिन्न व्यक्ति थे। क्योंकि भगवान पार्श्व से प्रश्न करने वाला सोमिल ब्राह्मण वाराणसी का था और महावीर से प्रश्न करने वाला सोमिल ब्राह्मण वाणिज्यग्राम का था। काल व घटना की दृष्टि से भी दोनों पृथक-पृथक ही सिद्ध होते हैं / नामसाम्य से भ्रम में पड़ना उचित नहीं।। भगवान् पार्श्व के वाराणसी से विहार करने के पश्चात् सोमिल कुसंगति के कारण पुनः मिथ्यात्वी बन गया और उसने दिशाप्रोक्षक तापसों के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। प्रस्तुत कथानक में चालीस प्रकार के तापसों का विवरण प्राप्त होता है। उनमें से कितने ही तापस इस प्रकार थे१. केवल एक कमण्डलु धारण करने वाले। 2. केवल फलों पर निर्वाह करने वाले / 3. एक बार जल में डुबकी लगाकर तत्काल बाहर निकलने वाले / 4. बार-बार जल में डुबकी लगाने वाले / 5. जल में ही गले तक डूबे रहने वाले / 6. सभी वस्त्रों, पात्रों और देह को प्रक्षालित रखने वाले। 7. शंख-ध्वनि कर भोजन करने वाले। 8. सदा खड़े रहने वाले। 9. मग-मांस के भक्षण पर निर्बाह करने वाले। 10. हाथी का मांस खाकर रहने वाले। [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org